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रसायनविधिः ।
भावार्थ:- प्रतिनित्य मनुष्यको व्यायाम करना चाहिये । व्यायामसे अग्नि तेज होता है । शरीरके रोग दूर होते हैं । निद्रा, आलस्य, स्थूलता आदि शरीरदोष दूर होकर शरीर) कांति, पुष्टि स्वास्थ्य और दर्घि आयुकी प्राप्ति होती है । विशेष क्या; यह व्यायाम यौवन को कायम रखता हैं, और शरीरको मजबूत करता है ॥७
व्यायामकोलिये अयोग्यव्यक्ति तं व्यायाम वर्जयेद्रक्तपित्ती । श्वासी वाल: कासहिकाभिभूतः।। " स्त्रीषु क्षीणो मुक्तवासक्षतांग-।
स्सोष्णे काले रिनगात्रो ज्वरातः ॥८॥ भावार्थ--- रक्तपित्त श्वासकास (खांसी) हिचकी, क्षत (जखम) और ज्वर से. पीडित, जिसके शरीर से पसीना निकला हो, जो अतिमैथुन से क्षीण हो ऐसे मनुध्य एवं बालक को व्यायाम नहीं करना चाहिये । तथा स्वस्थ पुरुष को भी उष्णकाल (ग्रीष्म शरदऋतु) में व्यायाम छोड देना चाहिये ॥८॥
बलार्ध लक्षण प्रस्वेदादा शक्तिशथिल्यभावा । च्छक्तरंध चावशिष्टं विदित्वा ॥ व्यायामोऽयं वर्जनीयो मनुध्यै ॥
रत्यंताधिक्यान्वितो हंति भयम् ॥९॥ भावार्थ:-~-यथेष्ट व्यायाम करने के बाद पसीना आवे अर्थात् शक्ति कम होगई हो तब अधाश शक्ति रहगई समझकर व्यायाम को छोडना चाहिये। अत्यधिक व्यायाम शरीरको नाश ही करता है ॥९॥
उद्वर्तन गुण त्वग्वैवये श्लेष्ममेदोविकार। कण्डूमाये गात्रकायस्वरूप। वाताक्रांते पित्तरत्तात्रेऽस्मिन् ।
कार्य तत्रोद्वतेनं सवेदन ।। १० ॥ भावार्थ:-शरीरमें वर्ण विकार, कफविकारमेद धातुका विकार होजाय, प्रायः१ शरीर में जितनी शक्ति उत्सरो अर्ध भाग मात्र व्यायान में खर्च करना चाहिये । ...
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