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कल्याणकारके
भावार्थ — स्वस्थावस्था में मस्तकमें तेल लगाना चाहिये । इससे इंइंद्रियों को शांति
मिलती है । बाल (केश ) को मृदु करने के लिये यह कारण है एवं मस्तकको ठण्डा । गत सर्व रोगोंको यह नाश करता है ॥ ४ ॥
गवता
तैलाभ्यंग
ग गुण ।
दद्यात् मस्तकें स्वस्थकाले । कुर्यादेतत्तर्पणं चंद्रियाणाम् । केशानां वा मार्दवं हि प्रशांत रोगान्सर्वान्नाशयेग्गतच ॥ ४ ॥
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तैलघृताभ्यंग गुण | तैलाभ्यंग क्षेष्यवातमणाशी । पित्तं रक्तं नाशयेदा छुतस्य ॥ देहं सर्व तर्पयेोमपैवैवर्ण्यादिख्यातरोगापकप ॥ ५ ॥
भावार्थ:- तेल मालिश करना यह कफ और वातको नाश करता है। घी के मालिश करनेसे रक्त पित्त दूर होजाता है । रोमकूपोंस प्रवेश होकर यह सर्व देहको शांति पहुंचाता है | और वैवर्ण्यादि प्रसिद्ध त्वग्गत रोगोंको दूर करता है ॥ ५ ॥
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अभ्यंगकेलिये अयोग्य व्यक्ति । मूर्च्छाकांतोजीर्णभक्तः पिपासी । पानाक्रांतो रेचकी क्षीणगात्रः ॥ तं चाभ्यं वर्जयेत्सर्वकालं | संयोग दाहयुक्तज्वरे वा ।। ६ ।। भावार्थ:- मूर्च्छित, अजीर्णरोग से पीडित, पीलिया हो, और रेचन लिया हो जिस का शरीर हो, गर्भधारण कर अल्य समय होगया हो तो, ऐसे ( मालिश ) नहीं करना चाहिये || ६ ||
प्यासी, मद्य आदि को जिसने अतिकृश हो, दाह ज्वर से युक्त व्यक्तियों को हमेशा अभ्यंग
व्यायाम गुण | दीग्नित्वं व्याभिनिर्मुक्तगात्रं । निद्रा तंद्रास्थौल्यficiaनं च ॥ कुर्यात्कांतिपुष्टिमारोग्यमायु- । व्यामोऽयं यौवनं देहदादम् ॥७॥
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