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________________ (८०) कल्याणकारके भावार्थ:-इस प्रकार सम्पूर्ण द्रवद्रव्यों को वर्णन करके आगे, हम संक्षेप से, सर्व रसों के सम्पूर्ण अनुपान का वर्णन, मनोहर मत के अर्थात् पूर्वाचार्यों के दिव्य मत के अनुसार, सिद्धांताविरूद्ध रूपसे करेंगे ॥ ३८ ।। सर्व भोज्यपदार्थों के अनुपान । भोज्येषु सर्वेष्पपि सर्वथैव । सामान्यतो भेषजमुष्णतोयम् ॥ तिक्तेषु सौवीरमथाम्लतकं । पथ्यानुपानं लवणान्वितेषु ।। ३९ ॥ भावार्थ:-सभी प्रकारके भोजन में सामान्यदृष्टीसे सर्वथा गरम पानी पीछे से पाना यही एक औषध है । भोजनमे कांजी लेना ठकि है ॥ ३९ ॥ ___ कषाय आदि रसोंके अनुपान । नित्यं कषायेषु फलेषु कंदशाकेषु पथ्यं मधुरानुपानम् । श्रेष्ठं कटुंद्रव्ययुतानुपानं । सर्वेषु साक्षान्मधुराधिकेषु ॥ ४० ॥ भावार्थ:--कषाय रसयुक्त फल व कंदमूलके भाजियोमें मठिारस अनुपान करना पथ्य है, जो भोजन साक्षात् मधुर है उसमें चिरपरा रस अनुपान करना अच्छा है ॥४०॥ अम्ल आदि रसों के अनुपान आम्लेषु नित्यं लवणप्रगाढं । तिक्तानुपान कटुकेषु सम्यक् ॥ पथ्यं तथैवात्र कषायपानं । क्षीरं हितं सर्वरसानपानम् ॥४१॥ भावार्थ:-खट्टे पदार्थों के साथ लवणरस अनुपान करना योग्य है। तीखे पदार्थोके लिये कडुआ व कषायले रस अनुपान है दूध सभी रसोंके साथ हितकर अनुपान है ॥४१॥ - - १-कटुस्यात्कटुतिक्तयोः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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