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अन्नपानविधिः ।
(७७)
भावार्थ:-छाछ ( तक) हल का ( जल्दी पचनेवाला है) व उप्ण है, खट्टा व कषायला होता है। रूक्षगुणवाला है, अग्निको बढानेवाला एवं कफको दूर करनेवाला है, शुक्र पित्त व वायु विकारको उद्रेक करनेवाला है मल मूत्रको साफ करनेवाला है ॥२८॥
उदश्वित्के गुण सम्यक्कृतं सर्वसुगंधियुक्तं । शीतीकृतं सूक्ष्मपटसृतं च ॥ स्वच्छांबुसंकाशमशेषरोगः ।
संतापनुष्यमुदीश्चिदुक्तम् ॥ २९ ॥ भावार्थ:-दहीमें समभाग पानी मिलाकर मथन करें उसे उदश्वित् कहते हैं । जो अच्छीतरह तैयार किया गया हो सुगंध द्रव्यसे मिश्रित हो,ठण्डा किया हो, पतले कपडेसे शोधित हो एवं निर्मल पानीके समान हो, संपूर्ण रोगोंको व संतापको दूर करता हो व पौष्टिक हो उसे उदश्वित् कहते हैं ॥ २९॥
खलगुण । सर्वैः कद्रव्यगणैस्सुपक्कं । सुस्नेहसंस्कारयुतस्सुगंधिः ॥ श्लष्मानिलघ्नोऽग्निकरो लघुश्च ।
सर्वः खलस्तत्कृतकाम्लिकश्च ॥ ३० ॥ भावार्थ:-उपर्युक्त छाछमें मिरच आदि, कटुद्रव्य डालकर अच्छी तरह पकाकर उसमें घी आदिसे संस्कार ( छौंक ) किया गया हो उसे खल कहते हैं । वह कफ विकार व वात विकारको दूर करनेवाली है, एवं शरीरमें आग्निको तेज करती है । पचनमें हलकी है । इसी छाछकेद्वारा बनाये गये अम्लिका ( कढी ) आदिके भी यही गुण है ॥ ३०॥
नवनीत गुण। शीतं तथाम्लं मधुरातिवृष्यं । श्लेष्मावहं पित्तमरुत्प्रणाशी ॥ शोषक्षतक्षीणकृशातिवृद्ध
बालेषु पथ्यं नवनीतमुक्तम् ॥ ३१ ॥ . भावार्थ:-नवनीत ( लोणी ) शीत है, खट्टा रसवाला है । मधुर भी है।
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