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________________ (७६) कल्याणकारके भावार्थः--ऊपर कहे गये आठ प्रकार के दूधोंका सामान्य रूपसे गुण दोष बतलाते हैं । वह मधुर है, शीत है चिकना है , कामवर्द्धक है अत्यंत रक्तदोष, वातविकार, तृष्णारोग, पित्त, मूर्छा, अतिसार, श्वास खांस दोष, उन्माद, जीर्णज्वर भ्रम, मद, विषम उदावर्त रोग को नाश करता है ॥ २२ ॥ दूध शरीरको हित करनेवाला है, अत्यंत बल देनेवाला है, योनिरोगोंकेलिये उपयुक्त है । थकावटको दूर करनेवाला एवं गर्भस्रावको रोकनेवाला है, संपूर्ण हृदयके रोगोंको शमन करनेवाला है । बस्ति ( मूत्राशय ) के रोगों को शमन करता है गुल्मग्रंथियों को दूर करनेवाला है । ॥ २३ ॥ यदि वह दूध धारोष्ण हो अर्थात् धार निकालते ही पानेके काममें आवे तो वह अमृतके समान है। यदि उसे फिर गरम करके पिया जाय तो कफ और वात विकारको दूर करनेवाला है। गरम करके ठण्डा किया हुआ दूध पित्तविकारको शमन करता है। बाकी अवस्थामें अनेक विषम रोगोंके उत्पन्न होनेकेलिये कारण है ॥२४॥ दूध शरीरकेलिये हित है एवं श्रेष्ठ रसायन है । दूध शरीरके वर्णकी वृद्धि करनेवाला एवं शरीरमें बलप्रदान करनेवाला है । दूध मनुष्योंकी आंख के लिये हितकर है । दूध पूर्णायुकी स्थितिकेलिये सहकारी है एवं उत्तम है ॥२५॥ क्षीर शरीरमें अग्निको दीपन ( तेज ) करनेवाला है, प्रत्येक प्राणीके लिये यह जन्म कालसे ही प्रधान आहार है, उसे यदि गरम ही पीवें तो मलकी शुद्धि करता है अर्थात् दस्त लाता है । गरम करके ठण्डा किया हुआ दूध मल आदि को बांधने वाला है ॥२६ दही के गुण। दध्युष्णमम्लं पवनप्रणाशी । श्लष्मापहं पित्तकरं विषघ्नं ॥ संदीपनं स्निग्धकरं विदाहि । विष्टंभि वृष्यं गुरुपाकमिष्टम् ॥ २७ ॥ भावार्थ:--दही उष्ण है, खट्टी है, वातविकार दूर करनेवाली है, कफको नाश करनेवाली है, पित्तोत्पदक है, विषको हरनेवाली है, अग्नितेज करनेवाली है । स्निग्ध कारक है, विदाहि है, मलावरोधकारक है, वृष्य ( कामोत्पादक ) है, देरमें पचनेवाला है ॥ २७॥ तक्रगुण। तकं लधूष्णाम्लकषायरूक्ष- । मग्निप्रदं श्लेष्मविनाशनं च । शुक्लं हि पित्तं मरुतः प्रकोपी ॥ संशोधनं मूत्रपुरीपयोश्च ॥ २८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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