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________________ अन्नपान विधिः ( ७५) भावार्थ-ऊठनी, भैंस, गाय, मेंढी, बकरी, हरिणी, घोडी, और मनुष्य स्त्री, इमसे उत्पन्न लोकप्रसिद्ध दूध आठ प्रकारका है । वह, नानाप्रकारके वृक्ष, तृण, प्रसिद्ध औषधियों द्वारा उत्पन्न है विशिष्ट वीर्य जिसका, अर्थात् उपरोक्त दूध देने वाली प्राणियां नाना प्रकारके वनस्पतियोंको खाती हैं जिसमें प्रसिद्ध औषधि भी होती हैं, उनके परिपाक होनेपर, उन औषधियोंके वीर्य दूधमें आजाता है। इसलिये, सर्व प्राणियोंको सभी दूध हितकर होते हैं ॥ २१ ॥ दुग्धगुण । तदपि मधुरशीतं स्निग्धमत्यंतवृष्यं । रुधिरपवनतृष्णापित्तमूछातिसारं ॥ श्वसनकसनशोषोन्मादजीर्णज्वराति । भ्रममदविषमोदावर्तनिर्नाशनं ज ॥ २२ ॥ हितकरमतिबल्यं यो निरोगप्रशस्तं । . श्रमहरमतिगर्भस्रावसंस्थापनं च ।। निखिलहृदयरोगप्रोक्तबस्त्यामयानां । प्रशमनमिह गुल्मग्रंथिनिर्लोठनं च ॥ २३ ॥ धारोष्णदुग्ध गुण । श्रृतोष्णदुग्धगुण । अमृतमिव मनोज्ञं यच्च धारोष्णमेतत् । कफपवननिहंतप्रोक्तमेतच्छ्रितोष्णम् ।। शमयति बहुपित्तं पकशीतं ततोन्य-। द्विविधविषमदोषोद्धृतरागैकहेतुः ॥ २४ ॥ क्षीरं हितं श्रेष्ठरसायनं च । क्षीरं वपुर्वर्णबलावहं च ॥ क्षीरं हि चक्षुष्यमिदं नराणाम् । क्षीरं वयस्थापनमुत्तमं च ॥२५॥ श्रृतशीतदुग्धगुण क्षीरं हि संदीपनमद्वितीयं । क्षीरं हि जन्मप्रभृति प्रधानं ।। सोष्णं हि संशोधनमादरेण । संधानकृत्ततिशीतलं स्यात् ॥ २६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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