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कल्याणकारके
मुद्यू ष गुण । ज्वरहरमनिलाढ्यं रक्तपित्तप्रणाशं । वदति मुनिगणस्तन्मुद्गग्रूपं कफघ्नं ॥ पवनमीप निहंति स्नेहसंस्कारयुक्तं ।
शमयति तनुदाहं सर्वदोषप्रशस्तम् ॥ १९ ॥ भावार्थः-पूर्वाचार्य मुद्गयूषका गुण दोष कहते हैं कि वह ज्वरको दूर करने वाला है। वातवृद्धि करनेवाला है, रक्तपित्त और कफको दूर करनेवाला है । यदि वह संस्कृत हो अर्थात् घी, तेल आदिसे युक्त हो तो वायुको भी शमन करता है एवं शरीर दाहको शमन करता है, सर्व दोषोंके लिए उपशामक है ॥ १९ ॥
मुद्गयूष सेवन करने योग्य मनुष्य. व्यपहतमलदोषा ये व्रणक्षीणगात्रा । अधिकतर तृषार्ता ये च धर्मप्रतप्ताः ॥ ज्वलनमुखविदग्धा येऽतिसाराभिभूताः ।। श्रमयुतमनुजास्ते मुद्गयूषस्य योग्याः॥ २० ॥
भावार्थ:----जिन का मल व दोष, वमन आदि कर्मोद्वारा शरीर से निकाल दिया हो, व्रण के कारण जिन का शरीर क्षीण होगया हो, जो अत्यंत प्यासा हो, धूपसे जिनका शरीर तप्त हो, अग्नि के द्वारा दग्ध हो, अतिसार रोगसे पीडित हो, एवं जो थक गये हो ऐसे मनुष्य मुद्गयूष सेवन करने योग्य हैं अर्थात् ऐसे मनुष्य यदि मुद्गयूष सेवन करें तो हित हो सकता है ॥ २० ॥
दुग्धवर्ग।
अष्टविधदुग्ध । करभमहिषगोविच्छागमृग्यश्वनारी-। पय इति बहुनाम्ना क्षीरमष्टप्रभेदम् ॥ विविधतरुतृणाख्यातौषधोत्पन्नवीय- । हितकरमिह सर्वप्राणिनां सर्वमेव ।।२१ ॥
१ द्विदल (मूंग मटर आदि) धान्यों को अठारह गुण जल डालकर सिद्ध किया गया दाल को यूष कहते हैं । कहा भी है-स्निग्ध पदार्थो यूष स्मृतो वैदलानामष्टादशगुणेऽम्भसि ।।
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