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________________ ( ६६ ) कल्याणकारके भावार्थ:- -बेल, पाषाणभेद, पहाडीबेल, अजवायन, गंगेरन क्षीरीवृक्ष ( बड, गूलर पीपल पाखर, फारस, पीपल) जानून, तोरणं, (!) तेंदू, मोलसिरी, खिरनी, चंदन कटेली, भिलावा, फालसा, तुलकी ( ! ) इत्यादि वृक्षों के फल, मल को बांधने वाले हैं । शीत हैं और पित्त, कफोत्पन्नव्याधियों में हितकार हैं ॥ ४४ ॥ द्राक्षादिक्षफलशाकगुण । द्राक्षामोचमधूककाश्मरिलसत्खर्जूरिशृंगाटक | प्रस्पष्टोज्वलनालिकेरपनसप्रख्यात हिंताल सत्तालादिद्रुमजानिकानि गुरुकाण्युदृप्तशुक्र कराण्यत्यंतं कफवर्द्धनानि सहसा तालं फलं पित्तकृत् ॥ ४५ ॥ भावार्थ:- - अंगूर केला, महुआ कुम्भेर सिंघाडे, नारियल, पनस ( कटहर ) हिंतल ( तालवृक्षका एकभेद ) आदि इन वृक्षोंसे उत्पन्न फल पचनमें गुरु हैं । शुक्रको करने वाले हैं । एवं अत्यंत कफवृद्धिके कारण हैं । तालफल शीघ्र ही पित्तको उत्पन्न करनेवाला है ॥ ४५ ॥ Jain Education International तालादिशाकगुण | तालादिद्रुमकेतकीप्रभृतिषु लक्ष्मापहं मस्तकं । स्थूणीकं तिलकल्कमप्यभिहितं पिण्याकशाकानि च । शुष्काण्यत्र कफापहान्यनुदिनं रूक्षाणि वृक्षोद्भवान्यस्थीनि प्रबलानि तानि सततं सांग्राहिकाणि स्फुटं ॥ ४६ ॥ भावार्थ:- -ताड, केतकी ( केवडा ) नारियल आदि, वृक्षोंके मस्तक ( ऊपरका ) भाग एवं स्थूणीक ( ! ) तिल का कल्क, मालकांगनी आदि शाक कफको नाश करने वाले हैं । इस वृक्षोंते उत्पन्न, शुष्कबीज भी कफनाशक हैं, रूक्ष हैं, अत्यंत वात को उत्पन्न करने वाले हैं एवं हमेशा शरीर के द्रवस्राव को सुखाने वाले हैं ॥ ४६ ॥ - उपसंहार । शाकान्येतानि साक्षादनुगुणसहितान्यत्रलोकप्रतीतान्युक्तान्यस्माद्द्वाणां प्रवचनमिहसंक्षेपतस्संविधानैः । अत्रादौ तोयमेव प्रकटयितुमतः प्रक्रमः प्राणिनां हि । प्राण बाह्यं द्रवाणामपि परममहाकारणं स्वप्रधानम् ॥ ४७ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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