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कल्याणकारके
होते हैं उन चैत्र वैशाख आदि बारह मासोमें छह ऋतु होते हैं तांग तीन ऋतुओंका एक अयन होता है । वह दक्षिणायन, उत्तरायनके रूपसे दो प्रकारका है । इन दोनों अयनोंके मिलने से एक वर्ष बनता है ।। ५॥
ऋतुविभाग |
आद्यः स्यान्मधुरुर्जितः शुचिरिहाप्यं मोधराडंबरः । शत्तापकरी शरद्विमचयो हेमंतक: शैशिरः ॥ यथासंख्यविधानतः प्रतिपदं चैत्रादिमासद्वयं । नित्यं स्यातुरित्ययं द्यभिहितः सर्वक्रियासाधनः ॥
मधुकी वृद्धि होती है अर्थात्
।
इसका · समय चैत्र व वैशाख । श्रावण भाद्रपद वर्षाऋतुक
भावार्थ - सबसे पहिला ऋतु वसंत है जिसमें फूल व फल फूलते व फलते हैं । इसे मधुऋतु भी कहते हैं मास है। दुसरा ग्रीष्मऋतु है जो जेष्ठ व आषाढ मास में होता है समय है जिस समय आकाशमें मेघका आडंबर रहता है । आश्विन व कार्तिक में सदा सैतापकर शरत्ऋतु होता है । मार्गशीर्ष व पौष मासमें हेमंतऋतु होता है जिसमें अत्यधिक ठण्डी पडती है । माघ व फाल्गुनमें शिशिरऋतु होता है जिसमें हिम गिरता है इस प्रकार दो २ मासमें एक २ ऋतु होता है । एवं प्रति दिन सर्वकार्यों के साधन स्वरूप छहों ही ऋतु होते हैं ॥ ६ ॥
६ ॥
प्रतिदिन में ऋतुविभाग |
पूर्वा तु वसंतनामसमयो मध्यंदिनं ग्रीष्मकः । प्रावृष्यं ह्यपराण्हमित्यभिहितं वर्षागमः प्रानिशा । मध्यं नक्तमुदाहृतं शरदिति प्रत्युषकालो हिमो । नित्यं वत्सरवत्कमात्प्रतिदिनं षण्णां ऋतुनां गतिः ॥ ७ ॥ भावार्थ::- प्रातः काल के समयपर वसंतऋतुका काल रहता है, मध्यान्हमें ग्रीष्मऋतुका समय रहता है । अपरह अर्थात् सांझ के समय में प्रावृट् जैसा समय रहता है, रात्रिका आद्य भाग बरसातका समय है, मध्यरात्रि शरत्कालका समय है, प्रत्यूषकालमें ( प्रातः ४ बजेका समय ) हिमवंतऋतु रहता है इस प्रकार वर्ष में जिस तरह छह ऋतु होते हैं उसीतरह प्रतिदिनं छहों ऋतुवोंकी गति होती है ॥ ७ ॥
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१ - प्रत्येक दिन में भी कोनसा दोष किस समय संतय प्रकोप आदि होते हैं इसको जानने के लिये, यह प्रत्येक दिन छह ऋतुवोंकी गति बतायी गई है ।
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