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________________ धान्यादिगुणागुणविचार सोऽयं स्याद्विविधोऽनुमानविषयो रूपाद्यपेतोऽकियो लोकाकाशसमस्तदेशनिचितोप्येकैक एवाणुकः कालोऽद्रियगोचरः परम इत्येवं प्रतीतस्सदा । तत्पूर्वी व्यवहार इत्यभिहितः सूर्योदयादिक्रमात् ॥ ३ ॥ भावार्थ - यह काल प्रत्यक्ष गोचर नहीं है । अनुमानका विषय है । वह काल दो प्रकारका है । एक निश्चय अर्थात् परमार्थ काल दूसरा व्यवहार काल है । निश्चय काल अमूर्त है अर्थात् स्पर्शरस गंधवर्णसे रहित है । लोकाकाशके प्रत्येक प्रदेश में एक एक अणुके रूपमें स्थित है । वह इंद्रिय गोचर नही अर्थात् अतींद्रिय केवल ज्ञानसे जिसका ज्ञान होसकता है वह परमार्थ अथवा निश्रय काल है । इसके अलावा सूयोर्दयादिके कारणसे वर्ष मास दिन घडी घंटा मिनिट इत्यादिका जो व्यवहार जिस कालसे होता है उसे व्यवहार काल कहते हैं ॥ ३॥ व्यवहारकाल के अवांतर भेद । संख्यातीततया प्रतीतसमेया स्यादावलीति स्मृता । संख्यातावलिकास्तथैवमुदितासोच्छ्राससंज्ञान्विताः सप्तोच्छ्रासगणो भवत्यतितरां तोकस्सविस्तारतः । तोकात्प्लवो भवेयुतास्त्रिंशल्लवान्नाडिका ॥ ४ ॥ भावार्थ - असंख्यात समयोंको एक आवली कहते हैं । संख्यातआवलियोंका एक तोक होता है । सात तोकोंसे एब एक उच्च्छास होता है । 1 होता है अडतीस लवोंकी एक नाडी होती है ॥ ४ ॥ मुहूर्त आदिके परिमाण | नाड्यौ द्वे च मुहूर्तमित्यभिहितं त्रिंशन्मुहूर्ताद्दिनं । पक्षःस्यादशपचचैव दिवसास्ती शुक्ल ष्णौ समौ । मासाद्वादश च ते ऋतुगणाः चैत्रादिकेषु क्रमात् । द्वे चैवाप्ययने तयोर्मिलितयोर्ष हि संज्ञाकृता ॥५॥ भावार्थ:-- दो नाडियोंसे एक मुहूर्त होता है। तीस है। पंद्रह दिनोंका एक पक्ष होता है । उस पक्षका शुद्ध पक्ष और दो भेद हैं । इन दोनों पक्षोंका एक मास होता है । यह मास चैत्र ( ४९ ) Jain Education International १ – एक पुगल परमाणु एक आकाश प्रदेश से दूसरे प्रदेशको मंदगति से गमन करने के लिये जितना समय लेता है उतने कालको एक समय कहते हैं । For Private & Personal Use Only मुहूर्तीका एक दिन होता कृष्णपक्ष इस प्रकार वैशाख आदि बारह www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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