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सूत्रव्यावर्णनम्
(४७) अंतिमकथन। इति जिनवक्त्रनिर्गतसुशास्त्रमहांबुनिधेः । सकलपदार्थविस्तृततरंगकुलाकुलतः । उभयभवार्थसाधनतटद्वयभासुरतो ।
निसृतमिदं हि शीकरनिभं जगदेकहितम् ॥ ६९ ॥ भावार्थ:-जिसमें संपूर्ण द्रव्य, तत्व व पदार्थरूपी तरंग उठ रहे हैं, इह लोक परलोकके लिये प्रयोजनीभूत साधनरूपी जिसके दो सुंदर तट हैं, ऐसे श्रीजिनेंद्रके मुखसे उत्पन्न शास्त्रसमुद्रसे निकली हुई बूंदके समान यह शास्त्र है । साथमे जगतका एक मात्र हित साधक है [ इसलिये ही इसका नाम कल्याणकारक है ] ॥ ६९ ॥
इत्युग्रादित्याचार्यकृत कल्याणकारके स्वास्थ्यरक्षणाधिकारे
सूत्रव्यावर्णनं नाम तृतीयः परिच्छेदः।
इत्युग्रादित्याचार्यकृत कल्याणकारक ग्रंथ के स्वास्थ्यरक्षणाधिकार में विद्यावाचस्पतीत्युपाधिविभूषित वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री द्वारा लिखित भावार्थदीपिका टीका में सूत्रव्यावर्णन नामक
तृतीय परिच्छेद समाप्त हुआ।
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