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सूत्रव्यावर्णन
पित्तप्रकृतिक मनुष्यका लक्षण पित्ताद्भवायाः प्रकृतः सकाशात् । क्रोधाधिकरतीक्ष्णतरः प्रगल्भः।" संस्वेदनः पतिसिवितानः । यतः प्रियस्ताम्रतगष्ठतालुः ॥ ३१ ।। मेधान्वितः शूरतरोऽप्रधृष्यो । वाग्मी कविर्वाचकपाठकः स्यात् । शिल्पप्रवीणः कुशलोऽतिधीमान । नजाऽधिकः सत्यपगतिसत्वः ।। २२ ॥ पीतोऽतिरक्तः शिथिलोष्णकायो । रक्तांबुजीपम्पकराधियुग्मः ।। क्षिणं जरातः खलताप्रमुष्टः सौभाग्यवान संततभाजनार्थी ।। २३ n स्वभे सुवर्णाभरणानि पश्य । द्जास्रजोऽलक्तकमासवगीन । उल्काशतिप्रास्फुरदग्निराशीन । पुप्पोत्करान किंशुककर्णिकारान् ॥ २४ ॥
भावार्थः पित्त प्रकृतिकाः मनुष्य क्रोनी, तिक्ष्ण बुद्धीवाला, चतुर, पसीनाथुक्तम पीतवर्णकी सिरायुक्त, प्रिय, लालआष्ट व तालुसे युक्त, बुद्धिमान् ; सूर अभिमान या धिटाईसे युक्त, वक्ता, कवि, वाचक, पाटक, शिल्पकलामें प्रवीण, कुशल, अत्यधिक विद्वान् , पराक्रमी, सत्यशील, बलवान् , पति, रक्त, शिथिल व उष्ण कायको धारण करनेवाला, लाल कमल के समान हाथ पैरको धारण करनेवाला, जल्दा बुढापेसे पीडित, खलित्व। बालोंका उग्वड जाना ] रोग से पीडित, सौभाग्यशाली, सदा भोजनेच्छ हुआ करता है एवं स्वप्नमें सुधर्ण निर्मित आभरण, बुंधुची का हार, लाक्षारस, मांस वगैरह, मेल्कापात, बिजली, तथा प्रज्वलित 'अग्निराशि, किंशुक, (पलाश) कोर्णकार ढाक ( कुनेर ) आदि लालवर्ण वाले पुष्प समूहोंको देखता है ॥ २१ ॥ २२ ॥ २३ ॥ २४ ।।
कफप्रकृति के मनुष्यका लक्षण ! 'योद्भवायाः प्रकृतर्नरः स्यान्मधाधिकः स्थूलतरः प्रसन्नः । दुवोकुरश्यामलगात्रयष्टिमयः कृतज्ञः प्रतिवद्धवरः ॥ २५ ॥" श्रीमान् मृदंगांवुदसिंहघोपः स्निग्धः स्थिरः सन्मधुरगियश्च । माधुर्यवीर्याधिकधैर्ययुक्तः कांतः सहिष्णुव्यसनविहीनः ॥ २६ ॥ शिक्षाकलावानपि शीघ्रमेव ज्ञातुं न शक्तः सुभगः सुनेत्रः ।। हंसाठ्यपद्मोत्पलपण्डवापीस्रोतस्विनीः पश्यति संप्रमशः ॥ २७ ॥
भावार्थः-कफ प्रकृति के मनुष्यको बुदि. अधिक होती है । वह मोटात प्रसन्न चित्तयुक्त, दर्भ के अंकुर के समान सांबलावर्णवाला, कृतज्ञ, दूसरोंके साथ बद्धतर, श्रमित, मृदंग, मेघ व सिंहके समान ( कण्टस्वर..), : शद्वयुक्त, स्नेही, स्थिरचित्त,
*-भुजा, इति पाठांतरं ।।
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