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कल्याणकारके
भावार्थ:--कदाचित् स्त्री पुरुषों के अज्ञानसे उस स्त्रीको रजस्वलाकी अवस्थामें ही यदि पहिले. दिन गर्भ धारण कराया जाय तो उससे उत्पन्न बालक गर्भमे ही मर जाता है । यदि दूसरे दिन गर्म रहा तो उत्पन्न होने के बाद दस दिनके अंदर मर जाता है । तीसरे दिन गर्भ रहा तो वह या तो जल्दी मर जाता है । यदि जीता रहा तो वह हकला, अंधा, वहिरा, सोतला एवं स्वभावसे अत्यधिक क्रूर होता है । इसलिये चौथे दिनमें हो बीज धारण कराना चाहिये अर्थात् संभोग करना चाहिये ॥ ४६॥ ४७॥
गमीत्पत्ति कम रजस्वलायां पुरुषस्य यत्नतः क्रमेण रेतः समुपैति शोणितम् तदा विशत्यात्मकृतोरुकर्मणाप्यनाद्यनंतः कृतचेतनात्मकः ॥४८॥
भावार्थ:--उपर्युक्त प्रकारसे रजस्वला होनेके चौथे दिनमें रित्रके साथ यत्नपूर्वक संभोग करें तो पुरुषका वीर्य स्त्रीके रक्त में (रज) जाकर (गर्भाशयमें) मिलता है । उसी समय यदि गर्भ ठहरनेका योग हो तो वहां अनादि, अनंत, और चैतन्य स्वरूपी आत्मा अपने पूर्वकर्म वश प्रवेश करता है ॥ ४८ ॥
जीवराद्धकी व्युत्पत्ति स जीवतीहेति पुन: पुनश्च वा स एव जीविष्यति जीवितः पुरा । ततश्च जीवोऽयमिति प्रकीर्तितो विशेषतः प्राणगणानुधारणात् ॥ ४९॥
भावार्थ:--वह शरीरादि प्राणोंको पाकर र्जाता है, पुनः पुनः भाविष्यमें भी जीयेग भूतकालमें जी रहा था इसलिये जीवके नाम से वह आत्मा कहा जाता है ॥ ४९ ॥
____ मरणस्वरूप। मनोवचः कायबलेंद्रियैस्सह प्रतीतनिश्वासनिजायुपान्वितः । दशैव ते प्राणगणाः प्रकीर्तितास्ततो वियोगः खलु देहिनो वधः ॥ ५०॥
भावार्थ:-मनोबल, वचनबल, कायवल इस प्रकार तीन बलप्राण, स्पर्शनेंद्रिय, रसनेंद्रिय, घ्राणेंद्रिया, चक्षुरिंद्रिय व श्रोनेंद्रिय इस प्रकार पांच इंद्रियप्राण एवं श्वासोच्छ्वास व आयु प्राण, इस प्रकार प्राणियोंको कुल देश प्राण हैं । जिनके वियोग से प्राणियोंका मरण होता है ।। ५० ॥
शरीरवृति केलिए पट्पयाति । ततस्तदाहारशरीरविश्रुतस्स्वकेंद्रियाच्यासमनावचास्यपि । प्रधानपर्याप्तिगणास्तु वर्णिता ययात्रामाज्जीवशरीरवद्धये ॥ ५१ ॥ १-इन प्राणों के रहनेपर. जीव जिन्दा कर लाता है।
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