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( २४ )
कल्याणकारके
भावार्थ:- जिस देशकी भूमि न तो अधिक लाल है और न सफेद है, न अधिक रूक्ष है और न घन है, जहां न तो अधिक शीत है ओर न भयंकर गर्मी है, न तो अधिक हवा है और न भयंकर बरसात है, न तो बहुत पहाड है और न भयंकर जंगल है एवं पहाडरहित जमीन भी नही है, न तो अत्यधिक जल है और न निर्जलप्रदेश है, न तो अधिक चोर है और न दुष्ट क्रूर जानवर हैं जहां सरयकी समृद्धि एवं सज्जनोंकी अधिकता है, जहां ऋतुके अनुकूल आहार के ग्रहण करनेसे एवं समान अभि होनेसे दोषों का विकार नही होता है, अत एव सदा रोगकी उत्पत्ति भी नहीं होती, उस देश को साधारण देश कहते हैं । इस देशमें रोगकी उत्पत्ति न होने से दोनों प्रकार के देशों की अपेक्षा यह साधारण देश ही प्रशरत है, उस देशमें मनुष्य सुखसे रहते हैं । अब साम्यक्रम ( शरीर आनुकूल्य ) कहा जाता है || ३५
॥ ३६ ॥
३७ ॥ ३८ ॥
सात्म्य विचार
नरस्य सात्म्यानि तु भेषजानि । प्रधानदेशोदक रोगविग्रहाः । यदेतदन्यच्च सुखाय कल्पते । निषेवितं याति विरुद्धमन्यथा ।। ३९ ॥ भावार्थ - जिनके सेवन से मनुष्यको सुख होता हो ऐसे औषधि, साधारणदेश रोग, शरीर आदि एवं और भी सुखकारक पदार्थ सात्म्य कहलाते हैं । इसके विरुद्ध अर्थात् जिनके सेवन से दुःख होता हो उसे असात्म्य कहते हैं ॥ ३९ ॥
जल,
प्रत्येक पदार्थ सात्म्य हो सकता है ।
यदल्पमल्पं क्रमतो निषेवितं विषं च जीर्ण समुपैति नित्यशः । ततस्तु सर्व न निवाधते नरं दिनैर्भवेत्सप्तभिरेव सात्म्यकम् ॥ ४० ॥
भावार्थ - यदि प्रति नित्य थोडा थोडा विष भी क्रमसे खाने का अभ्यास करें तो विपका भी पचन होसकता है । विषका दुष्प्रभाव नहीं होता है । इसलिये क्रमसे सेवन करनेपर मनुष्यको कोई पदार्थ अपाय नहीं करता । किसी भी चीज को सात दिनतक बरोबर सेवन करें तो [ इतने दिनके अंदर ही ] वह सात्म्य बनजाता है ॥ ४० ॥
प्रकृति कथन प्रतिज्ञा
इति प्रयत्नाद्वरसात्म्यलक्षणं निगद्य पुंसां प्रकृतिः प्रवक्ष्यते । विचार्य सम्यक् सह गर्भलक्षणम् प्रतीतजातिस्मरणादिहेतुभिः ॥ ४१ ॥
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