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________________ गर्भोत्पत्तिलक्षणम् (२३) भावार्थ:-इस प्रकार जांगल देश का लक्षण कह चुके हैं । अब अनूप देशका लक्षण कहेंगे । अनूप देशमें ठण्डा पानी अधिक होता है । इसलिये वहांकी जमीन सदा कीचडसे युक्त रहती है । जिस देशमें तृण, वृक्ष, गुल्म लता आदि अत्यंत कोमल होते हों, वटवृक्ष, विटंकवृक्ष, पाटली (पाढल) वृक्ष, व पुप्प सहित पारिजातक वृक्ष आदि जहां होते हों, अशोक वृक्ष, कंकोल वृक्ष, इलायची वृक्ष, लवंग वृक्ष, कंगु[कांगनी]जाति वृक्ष, मल्लिका (मोतीया भेद) वृक्ष, माधवी लता, पुष्पयुक्त मालती (चमेली) लता आदि हो, जहांके पर्वत वृक्षोंसे अलंकृत हों, और पर्वत तट झरने वगैरहसे युक्त हों, मेघसे कंपित चंपावृक्ष हों, मयूर, केकादि पक्षियोंके शबसे युक्त आम व केवडे के वृक्ष हों, जहां तमाखू , ताड नारियल, सुपारी आदिका वृक्ष हों, और ताड, हिंताल आदि वृक्षोंसे युक्त तटवाले एवं स्वच्छ जलसे पूर्ण सरोवर नदी आदि हों, जहांके सरोवर वापी नदी शरत्कालके आकाशके टुकडके समान मालुम होरहे हों, जो सदा बतक, हंस, जलकुक्कुट व पद्म, नीलकमल आदिके समूहोंसे अलंकृत रहते हों, जहां लंबी २ तांबूल लतायें हों, सर्वत्र धान, उडद आदि हों, बडे २ इक्षु बाटिकाओं के समूहसे युक्त केले व कदंब के वृक्ष हों, जहां गायका दूध, भैसका दूध व दही से तैयार किया हुआ एवं पनस, आम, खजूररस, नारियल, गुड आदि पदार्थीको अधिक रूपसे उपयोग कर स्वादिष्ट भोजन किया जाता हो, जहांके मनुष्य विनीत होते हों, जिनके पाद सुकुमारतासे युक्त हो, लाल रहते हों, अतीव स्थूलशरीर व वृत्तिको धारण करनेवाले हों, उस देशको अनूप देश कहते हैं । वहां अधिक कफसे युक्त वातकृत रोग उत्पन्न होते हैं । इसलिये वहांपर कुशल वैद्य सदा कफवातकी चिकित्सा करें । अब साधारण देशका स्वरूप कहा जायगा ॥ २५ ॥ २६ ॥ २७ ॥ २८ ॥ २९ ॥ ३० ॥ ३१ ॥ ३२ ॥ ३३ ॥ ३४ ॥ साधारण देश लक्षण। न चातिरक्ता नच पाण्डुवासिता । न चातिरूक्षा न च सांद्रभूमयः। न चातिशीतं नच निष्ठरोष्णता न चातिवाता न च वृष्टिरङ्गुता ॥ ३५॥ न चात्र भूभद्गणना सुराटवी । न चात्र निश्शैलतरावनिर्भवत् । न चातितोयं न च निर्जलान्वितं । न चातिचारा नच दुष्टदुर्मगाः ॥३६॥ सुसस्यमेतत् सुजनाधिकं जगत् । समतुकाहारविधानयोगतः । समानिभावान्न च दोषकोपता न चात्र रोगस्तत एव सर्वदा ॥ ३७॥ ततश्च साधारणमेव शोभनं यतश्च देशद्वयलक्षणेक्षितम् । जनास्सुखं तत्र वसंति संततं क्रमात्सुसात्म्यक्रम उच्यतेऽधुना ॥ ३८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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