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गर्भोत्पत्तिलक्षणम्
( २१ )
भावार्थ:- वीर्यंतराय कर्मके उपशम, क्षय या क्षयोपशम से मनुष्यको उत्तम बलकी वृद्धि होती है । वह बलवान् मनुष्य अनेक परीषहोंको सहन करने में समर्थ होता है ॥ १७ ॥ बलवान् मनुष्यके लक्षण
स सत्यवान्योऽभ्युदयक्षयेष्वपि । प्रफुल्लसौम्याननपंकजस्थितिः । न विध्यते तस्य मनः सुदुस्सहैः क्रियाविशेषैरपि धैर्यमाश्रितम् ॥ १८ ॥ भावार्थ:- -उस बलवान् मनुष्यकी संपत्ति आदिके नष्ट होनेपर भी वह अपने धैर्यको नहीं छोड़ता और उसके सुखकी कांति, शांति वगैरह सभी बातें तदवस्थ रहकर मुख, कमलके समान ही प्रफुलित रहता है । दुरसह क्रियावों के द्वारा उसका मन जरा भी विचलित नहीं होता है ॥ १८ ॥
जांगलादि त्रिविध देश
स जांगल पनि जाभिधानवान् । प्रधानसाधारण इत्यथापरः । सदैव देशस्त्रिविधः प्रकीर्तितः । क्रमात्त्रयाणामपि लक्षणं ब्रुवे ॥ १९ ॥
भावार्थ - जांगल, अनूप व साधारणके भेदसे देश, तीन प्रकारसे वर्णित है । साधारण देश प्रधान हैं । अब उन तीनों देशोंके लक्षणको यथाक्रम कहेंगे ॥ १९ ॥ जांगल देश लक्षण
कचिच्च रूक्षाः तृणसस्यवीरुधः कचिच्च सर्जार्जुनभूर्जपादपाः । कचित्पलाशासनशाकशाखिन : कचिच्च रक्तासितपांडुभूमयः ॥ २० ॥ कचिच्च शैलाः परुषोपलान्विताः कचिच्च वेत्कटकोटराटकी | कचिच्च शार्दूलकर्क्षदुर्मृगाः कचिच्च शुष्काः कुनटीः सशर्कराः ॥ २१ ॥ क्वचित्प्रियंगुरकाच कोद्रवाः कचिच मुद्राश्चणकाश्च शांतनु । कचित्खराश्वाश्वगवाष्ट्रजातयः । कचिन्महाछागगणैः सहावयः ।। २२ ।। क्वचिच्च कुग्रामवहिश्च दूरतो । महत्स्वगाधातिभयंकरेषु यत् सदैव कूपेषु जलं सुदुर्लभं । हरंति यंत्रैरतियत्नतो जनाः ॥ २३ ॥ निजेन तत्रातिकृशास्सिरातताः स्थिराः खरा निष्ठुरगात्रयष्टयः । जना सदा वातकृतामयाधिकास्ततस्तु तेषामनिलघ्नमाचरेत् ॥ २४ ॥ भावार्थ:-- जिस देशमें कहीं २ रूक्ष तृण, सस्य व पौधे हों, कहीं सर्ज, अर्जुन व भूर्ज वृक्ष हों, कहीं पलाश, अशन वृक्ष ( विजय सार ) सागवान वृक्ष हों कहीं लाल, काली व सफेद जमीन हों, कहीं कठोर पत्थरोंसे युक्त पर्वत हों, कहीं बांसोंके समूह व वृक्षकोटरसे युक्त जंगल पाये जाते हों, कहीं शार्दूल भेडिया आदि
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