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कल्याणकारके
इति जनशक्त्रनिर्गत सुशास्त्रमहांबुनिधेः सकलपदार्थविस्तृततरंगकुलाकुलतः उभयभवार्थसाधनतटद्वयभासुरतो
निस्सृतमिदं हि शीकरनिभं जगदेकहितम् ॥ ४९ ॥
भावार्थ:- जिसमें संपूर्ण द्रव्य, तत्व व पदार्थरूपी तरंग उठ रहे हैं, इहलोक परलोकके लिये प्रयोजनीभूत साधनरूपी जिसके दो सुंदर तट हैं, ऐसे श्रीजिनेंद्रके मुखसे उत्पन्न शास्त्रसमुद्रसे निकली हुई बूंदके समान यह शास्त्र है परंतु यह जगतका एक मात्र हित साधक है ( इसलिये ही इसका नाम कल्याणकारक है ) ॥ ४९ ॥
इत्युग्रादित्याचार्यकृत
कल्याणकारके स्वास्थ्यरक्षणाधिकारे शास्त्रावतारः प्रथमः परिच्छेदः
इत्युप्रादित्याचार्य कृत, कल्याणकारक ग्रंथ के स्वास्थ्यरक्षणाधिकार में विद्यावाचस्पतीत्युपाधिविभूषित वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री द्वारा लिखित भावार्थदीपिका टीका में शास्त्रावतार नामक प्रथम परिच्छेद समाप्त हुआ ।
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१ महासंहितायां इत्यधिक पाठमुपलभ्यते, क. पुस्तके ।
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