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________________ योग कहा है। इसके अतिरिक्त स्थान आदि पाँचों भेदों के इच्छा, प्रवृत्ति, स्थैर्य और सिद्धि-ये चार-चार भेद करके उनके स्वरूप और कार्य का वर्णन किया है। ऊपर आचार्य हरिभद्र के योग-विषयक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दिया है । इसका अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि आचार्यश्री ने अपने ग्रन्थों में मुख्य रूप से चार बातों का उल्लेख किया है १. कौन साधक योग का अधिकारी है और कौन अनधिकारी। २. योग का अधिकार प्राप्त करने के लिए पूर्व तैयारी-साधना का स्वरूप । ३. योग-साधना की योग्यता के अनुसार साधकों का विभिन्न रूप से वर्गीकरण ___ और उनके स्वरूप एवं अनुष्ठान का वर्णन । ४. योग-साधना के उपाय—साधन और भेदों का वर्णन । आचार्य हेमचन्द्र आचार्य हरिभद्र के बाद आचार्य हेमचन्द्र का नम्बर आता है। आचार्य हेमचन्द्र विक्रम की बारहवीं शताब्दी के एक प्रख्यात आचार्य हुए हैं । आप केवल जैनागम एवं न्याय-दर्शन के ही प्रकाण्ड पण्डित नहीं थे, प्रत्युत व्याकरण, साहित्य, छन्द, अलंकार, काव्य, दर्शन, योग आदि सभी विषयों पर आपका अधिकार था और उक्त सभी विषयों पर आपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। आपके विशाल एवं गहन अध्ययन एव ज्ञान के कारण आपको 'कलिकालसर्वज्ञ' के नाम से सम्बोधित किया जाता रहा है। ___ आचार्य हेमचन्द्र ने योग पर योग-शास्त्र लिखा है। उसमें पातञ्जल योगसूत्र में निर्दिष्ट अष्टांगयोग के क्रम से गृहस्थ-जीवन एवं साधु-जीवन की आचारसाधना का जैनागम के अनुसार वर्णन किया है। इसमें आसन, प्राणायाम आदि से सम्बन्धित बातों का भी विस्तृत वर्णन है। आचार्य शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव में वर्णित पदस्थ, पिण्डस्थ, रूपस्थ और रूपातीत ध्यानों का भी उल्लेख किया है । अन्त में आचार्यश्री ने अपने स्वानुभव के आधार पर मन के चार भेदों-विक्षिप्त, यातायात, श्लिष्ट और सुलीन-का वर्णन करके नवीनता लाने का प्रयत्न किया है। निस्सन्देह योग-शास्त्र जैन तत्त्व-ज्ञान, आचार एवं योग-साधना का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। आचार्य शुभचन्द्र योग-विषय पर आचार्य शुभचन्द्र ने ज्ञानार्णव की रचना की है। ज्ञानार्णव और योग-शास्त्र में बहुत-से विषय एक-से हैं । ज्ञानाणंव में सगं २६ से ४२ तक प्राणायाम और ध्यान के स्वरूप एवं भेदों का वर्णन किया है । यही वर्णन योग-शास्त्र हैं । सूत्र के अर्थ का बोध होना अर्थ है। बाह्य विषयों का ध्यान यह आलम्बन योग है। रूपी द्रव्य का आलम्बन किए बिना शुद्ध आत्मा की समाधि को अनालम्बन योग कहा है। --योग-विशिका टीका, ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001935
Book TitleJain Yog Granth Chatushtay
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1982
Total Pages384
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size18 MB
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