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परम्परा में इसका संयोग- जोड़ने अर्थ में प्रयोग हुआ है। गणित-शास्त्र में भी योग का अर्थ-जोड़ना, मिलाना किया है। मनोविज्ञान (Psychology) में 'योग' शब्द के स्थान में 'अवधान' एवं ध्यान (Attention) शब्द का प्रयोग हुआ है। मन की वृत्तियों को एकाग्र करने के लिए मनोवैज्ञानिकों (Psychologists) ने अवधान या ध्यान के महत्त्व को स्वीकार किया है। और ध्यान के लिए यह आवश्यक है कि मन को किसी वस्तु के साथ जोड़ा जाए। क्योंकि मन को एकाग्र बनाने की क्रिया का नाम ध्यान है और वह तभी हो सकता है, जब कि मन किसी एक पदार्थ के साथ सम्बद्ध हो जाए। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपने चिन्तन के अतिरिक्त पता ही नहीं चलेगा कि उसके चारों ओर क्या हो रहा है । इस प्रक्रिया को मनोवैज्ञानिक भाषा में 'सक्रिय ध्यान' (Active Attention) कहते हैं ।
- जैन और वैदिक परम्परा के अर्थ में भिन्नता ही नहीं, एकरूपता भी निहित है। जब हम 'चित्त-वृत्ति निरोध' और 'मोक्ष-प्रापक धर्म-व्यापार' शब्दों के अर्थ का स्थूल दृष्टि से अध्ययन करते हैं तो दोनों अर्थों में भिन्नता परिलक्षित होती है, दोनों में पर्याप्त दूरी दिखाई देती है। परन्तु जब हम दोनों परम्पराओं का सूक्ष्म दृष्टि से अनुशीलन-परिशीलन करते हैं, तो उनमें भिन्नता की जगह एकरूपता का भी दर्शन होता है।
'चित्त-वृत्ति का निरोध करना' एक क्रिया है, साधना है । इसका अर्थ हैचित्त की वृत्तियों को रोकना । परन्तु, यह एकान्ततः निषेधपरक अर्थ को ही अभिव्यक्त नहीं करती है, बल्कि विधेयात्मक अर्थ को भी अभिव्यक्त करती है। रोकने के साथ करने का भी सम्बन्ध जुड़ा हुआ है । अतः 'चित्त-वृत्तिनिरोध' का वास्तविक अर्थ यह है कि साधक अपनी संसाराभिमुख चित्त-वृत्तियों को रोककर अपनी साधना को साध्य-सिद्धि या मोक्ष के अनुकूल बनाए । अपनी मनोवृत्तियों को सांसारिक प्रपंचों एवं विषय-वासनाओं से हटाकर मोक्षाभिमुखी बनाए । मोक्ष-प्रापक धर्म-व्यापार से भी यही अर्थ ध्वनित होता है । जैन विचारक मोक्ष के साथ सम्बन्ध कराने वाली क्रिया को, साधना को ही 'योग' कहते हैं ।
जैन आगम में 'संवर' शब्द का प्रयोग हुआ है। यह. जैनों का एक विशेष पारिभाषिक शब्द है । जैन विचारकों के अतिरिक्त अन्य किसी भी भारतीय विचारक ने इस शब्द का प्रयोग नहीं किया है । 'संवर' शब्द का आध्यात्मिक साधना के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । आस्रव का निरोध करने का नाम संवर है।'
महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में चित्त-वृत्ति के निरोध को योग कहा है। इस तरह संवर और योग-दोनों के अर्थ में 'निरोध' शब्द का प्रयोग हुआ है । एक में
१ (क) निरुद्धासवे (संवरो),
(ख) आस्रव-निरोधः संवरः
--उत्तराध्ययन, २६, ११ -तत्त्वार्थ सूत्र ६, १
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