SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन- योग : एक परिशीलन [जैन योग की परिचयात्मक पृष्ठभूमि ] योग का महत्त्व विश्व की प्रत्येक आत्मा अनन्त एवं अपरिमित शक्तियों का प्रकाश-पुञ्ज है । उसमें अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख-शान्ति और अनन्त शक्ति का अस्तित्व अन्तर्निहित है । समस्त शक्तियों का महास्रोत उसके अन्दर ही निहित है । वह अपने आप में ज्ञानवान् है, ज्योतिर्मय है, शक्ति-सम्पन्न है और महान् है । वह स्वयं ही अपना विकासक है और स्वयं ही विनाशक ( Destroyer ) है । इतनी विराट् शक्ति का अधिपति होने पर भी वह अनेक बार इतस्ततः भटक जाता है, पथभ्रष्ट हो जाता है, संसार - सागर में गोते खाता रहता है, अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाता है, अपने साध्य को सिद्ध नहीं कर पाता है। ऐसा क्यों होता है ? इसका क्या कारण है ? वह अपनी शक्तियों को क्यों नहीं प्रकट कर पाता है ? उपाध्याय श्री अमर मुनि यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है । जब हम इसकी गहराई में उतरते हैं और जीवन के हर पहलू का सूक्ष्मता से अध्ययन करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जीवन में योग — स्थिरता का अभाव ही मनुष्य की असफलता का मूल कारण है । मानव के मन में, विचारों में एवं जीवन में एकाग्रता, स्थिरता एवं तन्मयता नहीं होने के कारण मनुष्य को अपने आप पर, अपनी शक्तियों पर पूरा भरोसा नहीं होता, पूरा विश्वास नहीं होता । उसके मन में, उसकी बुद्धि में सदा-सर्वदा सन्देह बना रहता है । वह निश्चित विश्वास और एकनिष्ठा के साथ अपने पथ पर बढ़ नहीं पाता । यही कारण है कि वह इतस्ततः भटक जाता है, ठोकरें खाता फिरता है और पतन के महागर्त में भी जा गिरता है । उसकी शक्तियों का प्रकाश भी धूमिल पड़ जाता है । अतः अनन्त शक्तियों को अनावृत्त करने, आत्म-ज्योति को ज्योतित करने तथा अपने लक्ष्य एवं साध्य तक पहुँचने के लिए मन, वचन और कर्म में एकरूपता, एकाग्रता, तन्मयता एवं स्थिरता लाना आवश्यक है । आत्म-चिन्तन में एकाग्रता एवं स्थिरता लाने का नाम ही 'योग' है । ' Jain Education International 1. The word ‘Yoga' literally means 'union'. -Indian Philosophy, (Dr. C. D. Sharam) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001935
Book TitleJain Yog Granth Chatushtay
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1982
Total Pages384
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy