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________________ शान्त स्वर में कहा कि "जीवन में दर्द तो चलता ही रहता है । जब तक आत्मा के साथ शरीर है, तब तक वेदनाएँ तो लगी ही रहती हैं। और अपना सम्बन्ध तो सिर्फ आज का ही और है । कल तो केवल मेरी स्मृति मात्र ही रह जायेगी। इसलिए तुमसे भी क्षमत-क्षमापना करने आ गया।" उस समय उनका स्वास्थ्य अच्छा था। शरीर पर ऐसे कोई चिह्न दिखाई नहीं दे रहे थे कि जिससे ऐसी कल्पना की जा सकें कि ये महापुरुष हम सबको छोड़कर आज ही चले जायेंगे। उनके जाने के बाद हम कुन्दन' भवन पढ़ने के लिए गई । अध्ययन करने के बाद हम सदा कुछ देर तक महाराज श्री की सेवा में बैठती थीं । उस दिन भी सेवा में थीं। वहाँ से चलंते समय मुनि श्री भानुऋषिजी म. से पूछा तो उन्होंने बताया कि कल रात को १२ बजे ध्यान करते समय हॉल कुछ क्षणों के लिये तेज प्रकाश से भर गया और उनके मुख से यह आवाज सुनाई दी कि "पैगाम आ गया है।" हम चार बजे कुन्दन भवन से अपने स्थानक में आई। सायंकाल प्रतिक्रमण के पश्चात् समाचार मँगवाए तो सुख-शान्ति के ही समाचार मिले। कोई चिन्ता जैसी बात नहीं थी। परन्तु रात को चार-पाँच बजे कुन्दन भवन के बाहर हलचल देखकर मन में कुछ सन्देह हुआ और पूछने पर पता लगा कि परम श्रद्धेय पूज्यपिताश्री का स्वर्गवास हो गया । यह सुनते ही मन रो उठा और अपने अन्तिम समय के लिए उनके द्वारा कहे गये शब्द याद आने लगे। ___ इस तरह वह महासाधक वि० सं० २०१३ श्रावण कृष्णा दशमी की रात को अनन्त की गोद में सदा के लिए सो गया। आज उनका भौतिक शरीर हमारे सम्मुख नहीं है परन्तु उनकी साधना, सरलता, सौजन्य एवं दयालुता आज भी हमारे सामने है। उनके गुण आज भी जीवित हैं। अतः वे मरे नहीं, बल्कि मरकर भी जीवित हैं और सदा-सर्वदा जीवित रहेंगे। -जैन साध्वी उमराव कुवर 'अर्चना' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001935
Book TitleJain Yog Granth Chatushtay
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1982
Total Pages384
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size18 MB
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