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यौगिक लब्धियाँ | २५७
हों, वे अनासक्त भाव से उतने ही स्वीकार किये जाएं, क्षुधा, तृषा आदि की निवृत्ति हेतु जितनी उनकी आवश्यकता हो । योगी को भिक्षा का समुचित विधि-क्रम यथार्थ रूप में समझ लेना चाहिए। ऐसा न होने पर भिक्षा निर्दोष
नहीं होगी। फलतः साधक का योग सदोष हो जायेगा। ' योगिक लब्धियां
[ ८३ ] जोगाणुभावओ चिय पायं न य सोहणस्स वि य लाभो ।
लद्धीण वि संपत्ती इमस्स जं वन्निया समए ॥ .
योग के प्रभाव से योगी के पाप-कर्म-अकुशल या अशुभ कर्म नहीं बंधता प्रत्युत उसे शुभ का लाभ होता है, उसके पुण्य बन्ध होता है। शास्त्रों में योगियों को लब्धियां प्राप्त होने का जो वर्णन है, वह इस तथ्य का सूचक है । अर्थात् योगी के विपुल पुण्य-संभार से स्वतः अद्भुत विभूतियाँ आविर्भूत होती हैं।
[ ८४ ] रयणाई लद्धीओ अणिमाईयाओ तह चित्ताओ ।
आमोसहाइयाओ तहा तहा जोगवुड्ढीए ॥
ज्यों-ज्यों योगी के जीवन में योग-वद्धि-योग-साधना का विकास होता जाता है, त्यों-त्यों रत्न आदि, अणिमा आदि एवं आमोसहि आदि लब्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं ।
ये यौगिक शक्तियाँ जैन परम्परा में लब्धियाँ कही जाती हैं । योगसूत्र के रचनाकार महर्षि पतञ्जलि ने इन्हें विभूतियाँ कहा है। बौद्ध परम्परा में ये अभिज्ञाएँ कही गई हैं।
महर्षि पतञ्जलि ने योगसूत्र में इन विभूतियों का यथास्थान वर्णन किया है, जहां उन्होंने बताया है कि यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि-योग के इन आठ अंगों के सिद्ध हो जाने पर अमुक अमुक विभूतियाँ-असामान्य शक्तियां संप्राप्त हो जाती हैं।
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