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वृत्तिसंक्षय | १९५
योग्यता के अभाव में संयोग या सम्बन्ध नहीं होता । यदि ऐसा न माना जाए तो सर्वत्र अव्यवस्था हो जाए । अतः यह — आत्मा की विजातीय पदार्थों के साथ संयुक्त या सम्बद्ध होने की योग्यता मुख्य भवमाता - जन्म - मरणरूप संसारावस्था की प्रमुख उत्पादिका है । जगत् प्रवाह का यही प्रमुख आधार है ।
! पल्लवाद्यपुनर्भावो स्यान्मूलापगमे
[ ४०८ ]
न स्कन्धापगमे
तरोः ।
भवतरोरपि ॥
यद्वत् तद्वद्
वृक्ष का मात्र तना काट देने से पत्र आदि का अपुनर्भाव - फिर उत्पन्न न होना घटित नहीं होता अर्थात् तना काट देने पर भी समय पाकर फिर वह हरा-भरा हो जाता है, नये अंकुर फूटने लगते हैं, पत्तियाँ निकल आती हैं, बढ़ जाने पर फूल लगने लगते हैं पर यदि वृक्ष की जड़ काट दी जाय तो फिर वैसा कुछ नहीं होता । पत्ते, फूल आदि सब आने बन्द हो जाते हैं । संसाररूपी वृक्ष की भी यही स्थिति है। जब तक उसका मूल उच्छिन्न न हो, वह बढ़ता एवं फलता-फूलता रहता है ।
[ ४०६ ]
मूलं च योग्यता ह्यस्य विज्ञ योदितलक्षणा । पल्लवा वृत्तयश्चित्रा हन्त तत्त्वमिदं परम् ॥
योग्यता, जिसका लक्षण पूर्ववर्णित है, संसाररूपी वृक्ष का मूल है । वृत्तियाँ तरह-तरह के पत्ते हैं यह परम तत्त्व है - यथार्थ वस्तुस्थिति है ।
[ ४१० ]
उपायोपगमे चास्या एतदाक्षिप्त एव हि । तत्त्वतोऽधिकृतो योग उत्साहादिस्तथाऽस्य तु ॥
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जीवन का यथार्थ लक्ष्य साधने, आत्मा और कर्म के संयोग की योग्यता का परिसमापन करने का उपाय उसी से अधिगत है, और तत्त्वतः वह योग है, जो उत्साह आदि से सधता है ।
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