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१९४ | योगबिन्दु भावनाएँ, जैसा कि शास्त्रों में बताया गया है, विशेष रूप से उद्भावित होती हैं।
[ ४०४ ] एवं
विचित्रमध्यात्ममेतदन्वर्थयोगतः । आत्मन्यधीतिसंवृत्त यमध्यात्मचिन्तकः
"अधि-आत्मनि-जो आत्मा को अधिष्ठित कर रहता है-आत्मा में टिकता है, वह अध्यात्म है" इस व्युत्पत्ति के अनुसार अध्यात्म तत्सम्बद्ध बहुविध कार्य-कलाप में घटित है, संगत है, अध्यात्म-चिन्तन में अभिरत पुरुषों को यह जानना चाहिए। वृत्तिसंक्षय -
[ ४०५ ] भावनादित्रयाभ्यासाद वणितो वृत्तिसंक्षयः ।
स चात्मकर्मसंयोगयोग्यतापगमोऽर्थतः
भावना, ध्यान तथा समता के अभ्यास से वृत्ति-संक्षय उद्भावित । होता है। उसका अर्थ आत्मा और कर्म के संयोग की योग्यता का अपगम -दूर होना है। दूसरे शब्दों में अनादिकाल से आत्मा के साथ कर्मों का बन्ध होते रहने की वृत्ति-वर्तन-स्थिति या अवस्था का संक्षय होनामिट जाना वृत्ति-संक्षय है।
[ ४०६ ] स्थूलसूक्ष्मा यतश्चेष्टा आत्मनो वृत्तयो मताः ।
अन्यसंयोगजाश्चैता योग्यता बीजमस्य तु ॥ ।
आत्मा की सूक्ष्म एवं स्थूल-आभ्यन्तर तथा बाह्य चेष्टाओं को वृत्तियाँ कहा गया है। वे आत्मा का अन्य-आत्मतर-विजातीय पदार्थों के साथ संयोग होने से निष्पन्न होती हैं। वह कारण, जिससे ऐसा होता है, योग्यता कहा जाता है ।
[ ४०७ ] तदभावेऽपि तद्भावो युक्तो नातिप्रसङ्गतः । मुख्यषा भवमातेति तदस्या अयमुत्तमः॥
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