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________________ त्रिधा शुद्ध अनुष्ठान | १३६ - पहले अनुष्ठान में अज्ञानरूप अन्धकार की अधिकता के कारण दोष-विगम - मोक्ष में बाधक दोषों का अपाकरण या नाश नहीं होता । कई आचार्यों का अभिमत है कि वैसा करने वाले को अगले जन्म में ऐसी स्थितियाँ प्राप्त होती हैं, जिससे वह मोक्ष से दूर ले जाने वाले कारणों को मिटा पाने में सक्षम होता है । फलतः योगाभ्यास में संप्रवृत्त होता है। ग्रन्थकार का यहाँ यह अभिप्राय है कि पर्वत के शिखर से गिरने आदि के रूप में जो आत्मघात किया जाता है, उससे वास्तव में मोक्ष - सिद्धि: नहीं होती । उससे वे स्थितियाँ अपगत नहीं होतीं, जिनके कारण मोक्षप्राप्ति बाधित होती है । क्योंकि वह उपक्रम अत्यधिक अज्ञान- प्रसूत होता है । मात्र इसलिए उसे शुभ अनुष्ठान में लिया गया है कि ऐसा करने वाले के मन में मोक्ष प्राप्ति की अभिलाषा रहती है । I [ २१६ ] मुक्ताविच्छापि यच्छ्लाघ्या तमः क्षयकरी मता 1 समन्तभद्रत्वादनिदर्शनमित्यदः तस्याः 11 मोक्ष की इच्छा होना भी प्रशंसनीय है । ऐसा माना गया है, उससे अज्ञानरूप अन्धकार का नाश होता है । इतना तो है, किन्तु मोक्ष तो सर्वथा कल्याणमय -- सम्पूर्णतः शुद्धावस्थापन्न है, अतः प्रथम कोटि (गिरि- पतनआदि) में आने वाले अनुष्ठान उसके साक्षात् हेतु नहीं होते । [ २१७ ] द्वितीयाद् दोषविगमो न गुरुलाघवचिन्तादि न यत् त्वेकान्तानुबन्धनात् । तत्र नियोगतः 11 दूसरी कोटि के अनुष्ठान में मोटे रूप में दोषों का अपगम तो होता है पर एकान्ततः दोषापगम का क्रम नहीं चलता- पूरी तरह दोष नहीं मिटते | क्या गुरु- बड़ा या ऊँचा है, क्या लघु - छोटा या हलका है, वह अपने क्रिया-कलाप में ऐसा कुछ भेद नहीं कर पाता । [ २१८ ] एवेदमार्याणां अत कुराजपुर सच्छालयत्न कल्पं Jain Education International बाह्यमन्तर्मलीमसम् । व्यवस्थितम् || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001935
Book TitleJain Yog Granth Chatushtay
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1982
Total Pages384
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size18 MB
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