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योग के भेद | ८६
योग के भेद
[ ३० ] मुख्यतत्त्वानुवेधेन स्पष्टलिङ्गान्वितस्ततः ।
युक्त्यागमानुसारेण योगमार्गोऽभिधीयते ॥ मुख्य तत्त्वों को ध्यान में रखते हुए, लक्षणों का स्पष्टतया विश्लेषण करते हुए शास्त्रानुसार तथा युक्ति-पूर्वक योगमार्ग आख्यात किया जा रहा है।
__ [ ३१ ] . अध्यात्म भावना ध्यानं समता वृत्तिसंक्षयः ।
मोक्षेण योजनाद् योग एष श्रेष्ठो यथोत्तरम् ॥ अध्यात्म, भावना, ध्यान, समता तथा वृत्तिसंक्षय-ये योग हैं । क्योंकि ये आत्मा को मोक्ष के साथ जोड़ते हैं । ये पाँचों उत्तरोत्तर श्रेष्ठ-उत्कृष्ट हैं। अर्थात् अध्यात्म से भावना, भावना से ध्यान, ध्यान से समता तथा समता से वृत्तिसंक्षय-क्रमशः एक-एक से उच्चतर यौगिक विकास के सूचक हैं ।
[ ३२ ] तात्त्विकोऽतात्त्विकश्चायं सानुबन्धस्तथाऽपरः । सास्रवोऽनास्रवश्चेति संज्ञाभेदेन कोतित:
एक अन्य प्रकार से तात्त्विक, अतात्त्विक, सानुबन्ध, निरनुबन्ध, सास्रव तथा अनास्रव-योग के ये छः भेद हैं ।
[३३-३४ ] तात्त्विको भूत एव स्यादन्यो लोकव्यपेक्षया । अच्छिन्न: सानुबन्धस्तु छेदवानपरो मतः ॥ सास्रवो दीर्घसंसारस्ततोऽन्योऽनास्रवः परः ।
अवस्थाभेदविषयाः संज्ञा एता यथोदिताः ॥ यथाविधि तत्त्वतः-वास्तव में योग का अनसरण तात्त्विक योग है।
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