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६८ | योगदृष्टि समुच्चय
जो योगियों के कुल में जन्मे हैं जिन्हें जन्म से ही योग प्राप्त हैजो जन्म से हो योगी हैं, जो प्रकृति से ही योगिधर्म के अनुसा हैं, वे कुल योगी कहे जाते हैं।
___ तात्पर्य यह है, जो योगी योग-साधना करते-करते आयुष्य पूर्ण कर जाते हैं, उस जन्म में अपनी साधना पूर्ण नहीं कर पाते वे कुलयोगी के रूप में जन्म लेते हैं अर्थात् पूर्वसंस्कारवश उन्हें जन्म के साथ ही योग प्राप्त होता है, उनकी प्रकृति योग-साधना के अनुरूप होती है, वे आत्मप्रेरित हो स्वयं साधना में जुट जाते हैं ।
कुलयोगी शब्द बड़ा महत्त्वपूर्ण है। जैसे कुलवधू, कुलपुत्र आदि प्रशस्त अर्थ में हैं, उसी प्रकार कुलयोगी भी एक विशेष अर्थप्रशस्तता लिए हुए हैं । कुलवधू उसे कहा जाता है, जो अपने उच्च चारित्र, शील, सदाचार, लज्जा तथा सौम्य व्यवहार से कुल को सुशोभित करती है । कुलपुत्र वह है, जो अपने उत्तम व्यक्तित्व और कृतित्व से कुल को उजागर करता है। उसी प्रकार कुलयोगी उसे कहा जाता है, जो अपनी पावन, उदात्त योगसाधना द्वारा योगियों की गरिमा ख्यापित करता है, उनके अनुकरणीय, आदर्श जीवन की पवित्रता प्रस्तुत करता है। कुलयोगी आनुवंशिक नहीं है । योगियों का वैसा कोई कुल नहीं होता कि पिता योगी हो, पुत्र भी योगी हो, पुत्र का पुत्र भी योगी हो ।' कुलयोगी शब्द साधनानिष्ठ, योगपरायण पुरुषों की परम्परा से सम्बद्ध है, जो जन्म, वंशानुगति आदि की दृष्टि से भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।
___ आर्यक्षेत्र के अन्तर्गत भारत भूमि में उत्पन्न भूमिभव्य कहे जाते हैं, उन्हें गोत्रयोगी भी कहा जाता है। इस भूमि में योग-साधना के अनुरूप उत्तम सामग्री, साधन, निमित्त आदि सुलभतया अधिगत होते हैं। पर केवल भूमि की भव्यता से साधना निष्पन्न नहीं होती। वह तभी सधती है, जब साधक अपनी भव्यता, योग्यता, एवं सुपात्रता प्रकट कर पाए।
अतएव प्रस्तुत श्लोक में कहा गया है कि दूसरे गोत्रयोगी होते हुए भी कुलयोगी नहीं होते।
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