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________________ परिशिष्ट ७ : परिभाषाएं ६४७ नियाग-नित्यान। नियागं प्रतिणियतं जं णिब्बंधकरणं। प्रतिनियत तथा प्रतिबद्ध भिक्षा नित्याग्र है। (दशअचू. पृ. ६०) निरासय-आशा रहित । निग्गता आसा अपसत्था जस्स सो निरासए। जिसमें अप्रशस्त आशा नहीं होती, वह निराशक है। (दशजिचू. पृ. ३२८) निव्वेयणी-निर्वेदनी कथा। पावाणं कम्माणं, असुभविवागो कहिज्जए जत्थ। इह य परत्थ य लोए, कहा उ णिव्वेयणी णाम॥ जिस कथा में इहलौकिक और पारलौकिक पाप कर्मों के अशुभ विपाक का वर्णन होता है, वह निर्वेदनी कथा है। (दशनि.१७४) निसग्गरुइ-निसर्गरुचि । निसग्गरुई णाम णिसग्गो सहावो सहावेण चेव जिणपणीए भावे रोयइ बहुजणमज्झे य महता संवेगसमावण्णो पसंसइ एस निसग्गरुई। जो स्वभावतः जिनप्रणीत भावों/पदार्थों में रुचि रखता है तथा तीव्र वैराग्य के कारण जनता से प्रशंसित होता है, वह निसर्गरुचि है। (दशजिचू. पृ. ३३) निसाद-निषाद । बंभणेण सुद्दीए जातो णिसादो त्ति वुच्चति। ब्राह्मण पुरुष से शूद्र स्त्री में उत्पन्न व्यक्ति निषाद कहलाता है। (उचू.पृ. ९६) निसेज्जा-निषद्या। निषद्या स्वाध्यायभूम्यादिकां यत्र निषद्यते। जहां बैठकर स्वाध्याय आदि किया जाता है, वह निषद्याभूमि/स्वाध्यायभूमि है। __ (उशांटी-प. ४३४) पओगकम्म-प्रयोगकर्म । जम्मि पओए वट्टमाणो कम्मपोग्गले गिण्हइ तं पओगकम्म। जिस प्रयोग में प्रवृत्त होकर जीव कर्म पुद्गलों को ग्रहण करता है, वह प्रयोगकर्म है। पंक-पङ्क। पंको नाम स्वेदाबद्धो मलः। (आचू. पृ. ४८) पसीने के साथ शरीर पर जमा हुआ मैल पंक कहलाता है। पसार पर जमा हुआ मल पक कहलाता हा (उचू.पु. ७९) पंडिय-पंडित। पंडिता इति सा बुद्धिपरिकम्मिता जेसिं ते। जिनकी बुद्धि परिकर्मित होती है, वे पंडित कहलाते हैं। (दशअचू. पृ. ४८) • पापाड्डीनः पण्डितः पण्डा वा बुद्धिः पण्डितः। जो पापों से रहित है, जिसकी बुद्धि पंडा-तत्त्वानुगा है, वह पंडित है। (उचू. पृ. २८) • पंडिया णाम चत्ताणं भोगाणं पडियाइयणे जे दोसा परिजाणंति पंडिया। जो त्यक्त भोगों के पुनः सेवन से होने वाले दोषों को जानते हैं, वे पंडित कहलाते हैं। __ (दशजिचू.पृ. ९२) पक्खपिंड-पक्षपिंड। पक्खपिंडो दोहिं वि बाहाहिं उरुगजाणूणि घेत्तूण अच्छणं। ___ दोनों हाथों से घुटनों एवं साथल को वेष्टित करके बैठना पक्षपिंड है। (उचू. पृ. ३५) पगासभोइ-प्रकाशभोजी (दिन में भोजन करने वाला)। प्रकाशभोई दिवसतो भुंजति न रात्रौ। जो दिन में भोजन करता है, रात में नहीं, वह प्रकाशभोजी है। (दचू. प. ४०) पच्चक्खाणपरिण्णा-प्रत्याख्यानपरिज्ञा। पच्चक्खाणपरिण्णा नाम पावं कम्मं जाणिऊण तस्स पावस्स जं Jain Education International अकरणं सा पच्चक्खाणपरिण्णा भवति। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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