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________________ ६४६ नियुक्तिपंचक धम्मत्थिकाय-धर्मास्तिकाय। धम्मत्थिकायो गतिपरिणयस्स गमणोवकारि त्ति गतिसभावो गतिलक्खणो। गति में परिणत जीव और पुद्गल की गति में उपकारी, गतिस्वभाव तथा गतिलक्षण वाला पदार्थ धर्मास्तिकाय है। (दशअचू. पृ. १०) धारणा-धारणा। अतीतगंथधरणं धारणा। अतीत को धारण करना-स्मृति में रखना धारणा है। (दशअचू. पृ. ६७) धीर-धीर। धीरो इति बुद्ध्यादीन् गुणान् दधातीति धीरः। जो बुद्धि आदि गुणों से युक्त है, वह धीर है। (सूचू. १ पृ. २१) धुयमोह-मोह जीतने वाला। धुयमोहा नाम जितमोह त्ति वुत्तं भवइ। मोह जीतने वाले को धुतमोह कहा जाता है। (दशजिचू. पृ. ११७) धुवजोगी-ध्रुवयोगी। धुवजोगी णाम जो खण-लव-मुहत्तं पडिबुज्झमाणादिगुणजुत्तो सो धुवजोगी। जो क्षण, लव, मुहूर्त-प्रतिपल जागरूकता आदि गुणों से युक्त होता है, वह ध्रुवयोगी है। (दशजिचू. पृ. ३४१) धुवमग्ग-ध्रुवमार्ग। धुवमग्गो णाम संजमो विरागमग्गो वा। संयम अथवा वैराग्य का मार्ग ध्रुवमार्ग है। (सूचू.१ पृ. १०९) नगर-नगर। ण एत्थ करो विजतीति नगरं। जहां कर नहीं लगता, वह नकर-नगर है। (आचू. पृ. २८१) नरग-नरक। नयन्ते तस्मिन् पापकर्मा स्वकर्मभिरिति नारकाः। जिसमें पापी अपने कर्म से ले जाए जाते हैं, वे नरक हैं। (उचू.पू. १३८) नाग-नाग । न तेषां किञ्चिज्जलं थलं वा अगम्यमिति नाग। जिनके लिए जल या स्थल कुछ भी अगम्य नहीं रहता, वे नाग (नागकुमार देव) हैं। (सूचू.१ पृ. १४८) नाहियादि-नास्तिकवादी। नास्त्यात्मा एवं वदनशील: नाहियवादी। जो आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता, वह नास्तिकवादी है। (दचू. पृ. ३६) निगमण-निगमन, उपसंहार। पतिण्णाए पुणो वयर्ण निगमणं। प्रतिज्ञा का पुनर्वचन निगमन है। (दशअचू.पृ. २०) निण्हव-निह्नव। निण्हवो णाम पुच्छितो संतो सव्वहा अवलवइ। पूछने पर जो सर्वथा अपलाप करता है, वह निह्नव है। (दशजिचू. पृ. २८५) निद्देसवत्ति-निर्देश का पालन करने वाला। निदेसवत्तिणो नाम जमाणवेति तं सव्वं कुव्वंतीति निद्देसवत्तिणो। जो गुरु की आज्ञा का उसी रूप में पालन करते हैं, वे निर्देशवर्ती कहलाते हैं। ___ (दशजिचू. पृ. ३१४) निम्मम-ममत्वरहित। नास्य कलत्र-मित्र-वित्तादिसु बाह्याभ्यन्तरेषु वस्तुषु ममता विद्यते इति निर्मम। जिसको स्त्री, मित्र,धन आदि बाह्य वस्तुओं में तथा आभ्यन्तर परिग्रह में ममता नहीं है, वह निर्मम होता है। (सूचू.१ पृ. १७६) www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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