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________________ परिशिष्ट ६ : कथाएं ५३३ हो, उसकी यदि घात न की जाए तो व्यक्ति स्वयं मारा जाता है।' यह सुनकर चंद्रगुप्त अपने विचारों से विरत हो गया। महाराज पर्वतक मर गया। नंद का पूरा राज्य चंद्रगुप्त के अधीन हो गया। ____ नंद के अनुचर चोरी के आधार पर आजीविका चलाते थे। वे राजद्रोह करते थे। चाणक्य एक उग्र चोरग्राह (चोरों को पकड़ने वाला) की खोज में था। वह नगर के बाहर गया। वहां नलदाम जुलाहे को देखा। उसके पुत्र को एक मकोड़े ने खा लिया। उसने कुपित होकर मकोड़े का बिल खोदकर अग्नि जलाकर सब मकोड़ों को नष्ट कर दिया। चाणक्य ने यह दृश्य देखा। उसने सोचा कि यह श्रेष्ठ चोरग्राह बन सकता है। चाणक्य ने उसे बुलाया और ससम्मान आरक्षक बना दिया। सबसे पहले नलदाम ने उन चोरों का विश्वास प्राप्त किया। भोजन, पानी आदि के उपचार से उन्हें विश्वस्त कर दिया। एक बार उन सबको सकुटुम्ब भोजन पर बुलाया और सबको मरवा दिया। राज्य निष्कंटक हो गया। कोश को समृद्ध करने के लिए चाणक्य ने समृद्ध लोगों के साथ मद्यपान करना प्रारम्भ कर दिया। उस समय विशेष वाद्य बजने लगे। वह सबमें भय पैदा करने के लिए नाचते हुए गाने लगा दो मज्झ धाउरत्ताई, कंचणकुंडिया तिदंडं च। राया वि मे वसवत्ती, एत्थ वि ता मे होलं वाएहि ॥ मेरे दो भगवा वस्त्र हैं-कंचन कुंडिका तथा त्रिदंड। राजा भी मेरे वशवर्ती है। यहां मद्यपान करते समय भी होल नामक वाद्य बजना चाहिए। दूसरा व्यक्ति इन वचनों को सहन नहीं कर सका। वह अपनी ऋद्धि को प्रदर्शित करते हुए नाचते हुए बोला गयपोययस्स मत्तस्स, उप्पइयस्स य जोयणसहस्सं। पए पए सयसहस्सं, एत्थ वि ता मे होलं वाएहि ॥ मत्त हस्तिशावक जो सहस्र योजन तक जा चुका है। उसके एक-एक पग पर हजार-हजार मुद्राएं देता हूं। इस पर भी होल नामक वाद्य बजना चाहिए। तीसरा व्यक्ति बोला तिलआढयस्स वुत्तस्स, निप्फन्नस्स बहुयसइयस्स। तिले-तिले सयसहस्सं, एत्थ वि ता मे होलं वाएहि ॥ मैंने एक आढक तिल बोए। उससे अनेक शत आढक तिल निष्पन्न हुए। एक-एक तिल पर एक-एक लाख की मुद्रा देता हूं। यहां भी होल नामक वाद्य बजना चाहिए। चौथा व्यक्ति बोला णवपाउसम्मि पुन्नाए,गिरिनदियाए सिग्घवेगाए। एगाह महियमेत्तेण, नवणीएण पालिं बंधामि॥ एत्थ वि ता मे होलं वाएहि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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