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________________ परिशिष्ट ६ : कथाएं ५३१ नंदराजा के साथ सिद्धपत्र वहां आया और बोला-'यह ब्राह्मण नंदवंश की मर्यादा का अतिक्रमण कर बैठा है।' दासी ने तब चाणक्य से कहा-'भगवन् ! आप दूसरे आसन पर बैठें।' चाणक्य ने दूसरे आसन पर कुंडिका, तीसरे पर दंड और चौथे पर गणेत्रिका (रुद्राक्ष का बना हुआ हाथ का आभूषण विशेष) तथा पांचवें आसन पर यज्ञोपवीत रख दिया। यह ब्राह्मण धीठ है' ऐसा कहकर नंद ने उसे बाहर निकाल दिया। चाणक्य अत्यंत क्रुद्ध होकर प्रतिज्ञा के स्वर में बोला-'नंद र का कोश और भृत्यसमूह बद्धमूल है। इसका वंश और मित्र वर्ग वृद्धिंगत है। मैं नंद राज्य को वैसे ही उखाड़ कर निर्मूल कर दूंगा, जैसे उग्र पवन महावृक्ष को उखाड़ देती है।' क्य वहां से उस व्यक्ति की खोज में निकला,जो उसका सहयोग कर सके। उसने अपने बारे में प्रतिकार राज्ञा बनने की बात सुनी। नंद के मोरपोषक एक गांव में रहते थे। चाणक्य परिव्राजक के रूप में उस गांद में गया। उसी दिन गांव के मुखिया की बेटी को चांद को खीर पीते हुए देखने दोहद उत्पन्न हुना। वह भिक्षाटन करता हुआ वहां गया। दोहद की बात ज्ञात होने पर उसने कहा-'यदि तुम बालक मुझे दे दोगे तो मैं चांद को खीर पीता हुआ दिखा दूंगा।' मुस्त्रिया ने बात मान ली। चाणक्य ने कपड़े का तंबू ताना और उसके बीच में छेद कर दिया। उस दिन पूर्णिमा थी। आधी रात में अनेक द्रव्यों से मिश्रित खीर की थाली भरी और जहाँ चन्द्र का प्रतिबिम्ब उस छिद्र में से पड़ रहा था, उस पट-मण्डप के नीचे उसे रख दी। लड़की को बुलाया। उसने चांद का प्रतिबिम्ब देखा और यह भी देखा कि वह थाली से खीर पी रहा है, खा रहा है। फिर पूर्व निर्दिष्ट पुरुष ने उस छिद्र को ढंक दिया। दोहद पूर्ण होने पर कालक्रम से उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम चन्द्रगुप्त रखा गया। धीरे-धीरे वह बढ़ने लगा। वह बच्चों के साथ खेलता और आनन्द में रहता था। चाणक्य वहां से चला गया। वह नंद की घात के लिए छिद्र देखने लगा। कालान्तर में वह लौटकर वहां पर आया। उसने चन्द्रगुप्त को देखा। चाणक्य के पास शस्त्रास्त्र थे। चन्द्रगुप्त ने कहा-'हमें भी दो'। चाणक्य बोला-'कोई तुम्हें इनसे मार न दे।' चन्द्रगुप्त ने उत्तर दिया-यह पृथ्वी वीरभोग्या है। जो वीर होगा, वही इसका उपभोग कर सकेगा। चाणक्य ने जान लिया किस बालक के पास शक्ति के साथ विज्ञान भी है। पूछा, यह बालक कौन है? लड़कों ने कहा- यह परिव्राजक का पुत्र है।' तब चाणक्य ने कहा-'मैं ही हूं वह परिव्राजक।' यह बात सुन सबको आश्चर्य हुआ। चाणक्य ने बालक से कहा-'चलो, मैं तुम्हें राजा बनाऊंगा।' वह चाणक्य के साथ चला गया। चाणक्य ने लोगों को एकत्रित कर पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। नंद ने उसको छिन्न-भिन्न कर दिया। परिव्राजक भाग गया। नंद के अश्वारोह उसके पीछे पडे । चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को एक पदम सरोवर में छिपा कर स्वयं रजक का वेश धारण कर लिया। अश्वारोहियों ने उसे देखा। इतने में नंद का एक अश्वारोही वहां पर आया। वह जात्यश्व पर आरूढ था। उसने रजक वेशधारी चाणक्य से पछा-'कहां है चन्द्रगप्त?'चाणक्य बोला-'चन्द्रगुप्त इस पद्मसरोवर में छिपा हुआ है।' अश्वारोही ने देखा। उसने अपना वस्त्र चाणक्य को सौंप तलवार हाथ में ले ली। वह अपना कवच उतारकर जल में उतरने लगा। इतने में ही चाणक्य ने उसके हाथ से तलवार खींच कर उसके धड़ को अलग कर दिया। फिर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को पुकारा। चन्द्रगुप्त छुपे स्थान से बाहर निकला। दोनों उस जात्यश्व पर चढ़कर वहां से पलायन कर गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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