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नियुक्तिपंचक
भंडार दे सकता हूं, जिससे तुम जीवन-भर हाथी के हौंदे पर सुखपूर्वक विचरण कर सको।' कार्पटिक बोला-'मुझे इतने विशाल परिग्रह से क्या करना है? मुझे इतने में ही संतोष है।' राजा ने सोचा
जो जत्तियस्स अत्थस्स, भायणं तस्स तत्तियं होई।
वुटे वि दोणमेहे, न डुंगरे पाणियं ठाई॥ -जिस व्यक्ति में जितने धन की पात्रता होती है, उसे उतना ही प्राप्त होता है। मूसलाधार वर्षा होने पर भी डूंगर पर पानी नहीं ठहरता।
राजा ने करचोल्लग की बात स्वीकार कर ली। उसने पहले दिन राजा के यहां भोजन किया। राजा ने उसे दो दीनार भी दिये। अब वह बारी-बारी से नगर-कुलों में भोजन करने लगा। उस नगर में अनेक कुलकोटियां थीं। नगर के घरों में क्रमशः भोजन करता हुआ वह कब उनका अन्त ले पाएगा? उस नगर के पश्चात् सभी गांवों का तथा सम्पूर्ण भारत का क्रम वह कैसे पूर्ण कर पाएगा?
__ संभव है किसी उपाय या देवयोग से वह सम्पूर्ण भारत के घरों का पार पा जाए पर मनुष्य जन्म को पुनः प्राप्त करना दुष्कर है।
२७. पाशक
गोल्ल देश में चणक नामक ग्राम था। वहां चणक नामक ब्राह्मण श्रावक था। एक बार उसके घर साधु ठहरे। ब्राह्मण के यहां दाढ़ा सहित पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम चाणक्य रखा। ब्राह्मण ने उसे साधु के चरणों में वंदना करवाई। साधुओं ने कहा-'यह राजा बनेगा।' ब्राह्मण ने सोचा यह दुर्गति में न चला जाए इसलिए उसके दांत घिस दिए। फिर भी आचार्य ने कहा-'इतने पर भी यह पूरा राजा नहीं तो बिंबांतरित राजा अवश्य बनेगा।
जब बालक चौदह वर्ष का हुआ तब चौदह विद्यास्थानों में पारंगत हो गया। श्रावक उसके अध्ययन से बहुत प्रसन्न हुआ। एक दरिद्र ब्राह्मण-कुल की कन्या के साथ चाणक्य का विवाह कर दिया गया। एक बार अपने भाई के विवाह-प्रसंग में वह पीहर गयी। उसकी अन्य बहिनों का विवाह समद्ध घरों में हुआ था। वे सब विवाह के अवसर पर आभूषणों से अलंकृत होकर आयी थीं। परिवार के लोग उनसे आलाप-संलाप कर रहे थे। चाणक्य की पत्नी अकेली उदास बैठी रहती थी। दारिद्र्य के कारण वह अधीर हो गयी। जब वह पुन: अपने ससुराल आई तो चाणक्य ने उसकी उदासी का कारण पूछा। वह कुछ नहीं बोली केवल आंसुओं से अपने कपोल गीले करती हुई नि:श्वास छोड़ती रही। चाणक्य बहुत आग्रहपूर्वक उसके दुःख का कारण पूछने लगा। उसने गद्गद वाणी से पीहर में घटित स्थिति बता दी। चाणक्य ने चिंतन किया-'निर्धनता अपमान का कारण है इसलिए पीहर में भी लड़की का ऐसा परिभव होता है। मुझे किसी भी प्रकार से धन कमाना चाहिए। पाटलिपुत्र में नंद राजा ब्राह्मणों को धन देता है अत: वहां जाना चाहिए। वहां जाकर चाणक्य कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूर्वन्यस्त आसन पर सबसे पहले जाकर बैठ गया। वह आसन पल्लीपति के लिए बिछाया जाता था।
१. उनि.१६१, उशांटी.प. १४५, १४६, उसुटी.प. ५६, ५७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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