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________________ नियुक्तिपंचक ३३८. वस्त्रैषणा के दो उद्देशक हैं। पहले में वस्त्रग्रहण करने की विधि का प्रतिपादन है और दूसरे में वस्त्रधारण करने की विधि निरूपित है। प्रस्तुत में द्रव्य वस्त्र का प्रसंग है। पात्र के विषय में भी यही निरूपण है। द्रव्यपात्र है-काष्ठ आदि से निर्मित पात्र और भावपात्र हैगुणधारी साधु। ३३९. अवग्रह के चार निक्षेप हैं-द्रव्य अवग्रह, क्षेत्र अवग्रह, काल अवग्रह और भाव अवग्रह । अथवा अवग्रह पांच प्रकार का है--देवेन्द्र का अवग्रह, राजा का अवग्रह, गृहपति का अवग्रह, सागारिक का अवग्रह तथा साधर्मिक का अवग्रह । ३४०. द्रव्य अवग्रह के तीन प्रकार हैं-सचित्त, अचित्त और मिश्र । क्षेत्र अवग्रह के भी ये ही तीन प्रकार हैं। काल अबग्रह के दो भेद हैं-ऋतुबद्धकाल अवग्रह तथा वर्षाकाल अवग्रह। ३४१. भाव अवग्रह दो प्रकार का है-मति अवग्रह तथा ग्रहण अवग्रह । मति अवग्रह के दो भेद हैं-अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह । अर्थावग्रह पांच इन्द्रिय तथा नोइन्द्रिय के भेद से छह प्रकार का है। व्यंजनावग्रह मन और चाइन्द्रिय को छोड़कर शेष चार इन्द्रियों का होता है। वह चार प्रकार का है। इस प्रकार सारा मतिभाय अवग्रह (६+४) दस प्रकार का है। ३४२. अपरिग्रही श्रमण का वस्त्र, पात्र आदि को ग्रहण करने का जो परिणाम है, वह ग्रहण अवग्रह है। प्रातिहारिक अथवा अप्रातिहारिक ग्रहण अवग्रह शुद्ध कैसे हो, इसके लिए उसे यतना करनी चाहिए। दूसरी चूला : सप्तकक ३४३. सप्तकक-सात अध्ययनों के कोई उद्देशक नहीं है। (पहला स्थान नामक अध्ययन है) स्थान का वर्णन पहले किया जा चका है। द्रव्य निक्षेप में ऊर्वस्थान का कथन है। (दस अध्ययन है-निशीथिका।) उसो छह निक्षेप हैं- (नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव)। ३४४. जो शरीर से प्रबलता से निकलता है, वह उच्चार है, विष्ठा है। जो प्रबलरूप से झरता है, वह प्रस्रवण-मूत्र है। मल-मूत्र विसर्जित करते हुए मुनि के अतिचार न होकर शुद्धि कैसे होती है ? ३४५. जो मुनि षड्जीवनिकाय की रक्षा के लिए उद्युक्त है, उसे अप्रमत्त रहते हुए सूत्रोक्त अवग्रह-स्थंडिल में उच्चार-प्रस्रवण का विसर्जन करना चाहिए। ३४६. रूप सप्तकक के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य रूप हैपांच संस्थान । भाव रूप के दो प्रकार हैं-वर्ण से, स्वभाव से । वर्ण से-पांचों वर्ण । स्वभाव से-क्रोध के वशीभूत होकर भ्रूभंग आदि शरीर की आकृति आदि । शब्द सप्तकक के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य है--- शब्द रूप में परिणत भाषा द्रव्य । भाव है .--- गुण और कीर्ति । ३४७. पर शब्द के नाम आदि छह निक्षेप हैं। द्रव्यपर आदि प्रत्येक के छह-छह प्रकार हैं-द्रव्यपर के छह प्रकार हैं -- तत्पर, अन्यपर, आदेशपर, क्रमपर, बहुपर तथा प्रधानपर। अन्यद शब्द के भी नाम आदि छह निक्षेप हैं। द्रव्य अन्यद् तीन प्रकार का है-तद्-अन्यद्, अन्य-अन्यद, आदेश-अन्यद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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