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आचारांग नियुक्ति
३२८. ईर्या शब्द का निक्षेप छह प्रकार का है-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और
भाव ।
३२९. द्रव्यर्या के तीन प्रकार हैं-सचित्त, अचित्त और मिथ। जिस क्षेत्र में जो ईर्या हो, वह क्षेत्र ईर्या है। जिस काल में जो ईर्या हो, वह काला है।
३३०. भावईर्या के दो प्रकार हैं-चरणर्या और संयमईर्या । संयमईर्या सतरह प्रकार के संयम का अनुष्ठान है। चरणईर्या है--गमनईर्या । श्रमण का किस प्रकार का गमन निर्दोष और परिशुद्ध होता है ? यह एक प्रश्न है ।।
३३१. आलंबन---प्रयोजन, काल, मार्ग और यतना---'इनके सोलह विकल्प होते हैं। यह सोलह प्रकार का गमन है। इसमें जो परिशुद्ध होता है, वही प्रशस्त गमन होता है।
३३२. चार कारणों से जो गमन होता है, वह परिशुद्ध होता है। चार कारण हैं--(१) आलंबन --प्रवचन, संघ, गच्छ, आचार्य आदि के प्रयोजन से, (२) काल-विहरणयोग्य अवसर, (३) मार्ग ... जनता द्वारा क्षुण्ण मार्ग, (४) यतना-गमन में भावक्रिया युक्त होकर युगमात्र दष्टि से चलना । अथवा अकाल में भी ग्लान आदि के प्रयोजन से यतनापूर्वक उपयुक्त मार्ग में गमन करना परिशुद्ध गमन है।
३३३. सभी उद्देशक ईर्या-विशोधि के कारक हैं । फिर भी प्रत्येक उद्देशक में कुछ विशेष है, वह मैं कहूंगा।
३३४.३३५. पहले उद्देशक में उपागमन- वर्षाकाल में एक स्थान पर रहना तथा शरद ऋतु में निर्गम और मार्ग में यतना का निरूपण है।
दुसरे उद्देशक में नौका में आरूढ व्यक्ति का छलन-प्रक्षेपण-हलन-चलन तथा जंघा संतार-पानी में बरती जाने वाली यतना तथा नानाविध प्रश्नों के पूछे जाने पर साध के कर्तव्य का निरूपण है।
तीसरे उद्देशक में अदर्शनता (कोई नदी के पानी आदि के विषय में पूछता है तो जानते हुए भी नहीं बताना) तथा उपधि में अप्रतिबद्ध होना--उपधि के चुराए जाने पर शिकायत के लिए स्वजन तथा राजगृह-गमन का वर्जन करने का निर्देश है । (किसी को चराए गए उपधि के विषय में कुछ न कहना।)
३३६. जैसे वाक्यशुद्धि अध्ययन में 'वाक्य' के निक्षेप किए थे वैसे ही भाषा शब्द के निक्षेप जानने चाहिए। जात शब्द के छह निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । द्रव्यजात चार प्रकार का है-उत्पत्तिजात, पर्यवजात, अन्तरजात तथा ग्रहणजात ।'
३३७. भाषाजात अध्ययन के दोनों उद्देशक वचन-विशोधिकारक हैं। फिर भी दोनों में कछ विशेष है। पहले उद्देशक में वचनविभक्ति का प्रतिपादन है। दूसरे उद्देशक में क्रोध आदि की उत्पत्ति न हो-ऐसे वचनविवेक का निरूपण है।
१. विस्तृत व्याख्या के लिए देखे, आटी पृ० २५७ ।
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