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नियुक्तिपंचक
प्रतिषेध करने पर यदि दाता रुष्ट हो जाए तो उसे सिद्धान्तों के आधार पर सम्यक
रूप से समझाने का कथन है। ३. तीसरे उद्देशक में मुनि की अंगचेष्टा- शरीर के प्रकंपन आदि को देखकर गहस्थ के
कुछ कहने या आशंकित होने पर यथार्थ-कथन का निरूपण है। शेष पांच उद्देशकों में उपकरण तथा शरीर-परित्याग का निरूपण है। वह इस प्रकार है४. चौथे उद्देशक में वैहानस तथा गृद्ध पृष्ठ मरण का निरूपण है। ५. पांचवें उद्देशक में ग्लानता तथा भक्तपरिज्ञा का प्रतिपादन है । ६. छठे उद्देशक में एकत्व भावना तथा इंगिनी मरण का निरूपण है। ७. सातवे उद्देशक में भिक्षु प्रतिमाओं तथा प्रायोपगमन अनशन का प्रतिपादन है। ८. आठवें उद्देशक में अनुपूर्वीविहारी मुनियों के होने वाले भक्तपरिज्ञा, इंगिनीमरण तथा
प्रायोपगमन अनशनों का निरूपण है।
२७६. विमोक्ष शब्द के छह निक्षेप हैं-नाम विमोक्ष, स्थापना विमोक्ष, द्रव्य विमोक्ष, क्षेत्र विमोक्ष, काल विमोक्ष तथा भाव विमोक्ष ।
२७७,२७८ द्रव्य विमोक्ष है--बेड़ी, सांकल आदि से छुटकारा । क्षेत्र विमोक्ष है-जेल आदि से छूटना । काल विमोक्ष है-चैत्यमहिमा आदि उत्सव दिनों में हिंसा आदि न करने की घोषणा । भाव विमोक्ष के दो प्रकार हैं देशत: विमोक्ष -साधु । सर्वत: विमोक्ष-सिद्ध ।
२७९. जीव का कर्मपुद्गलों के साथ संबंध होना बंध है। उससे वियुक्त होना मोक्ष है।
२८०. जीव स्व-अजित कर्मों से बद्ध है। उन पूर्वबद्ध कर्मों का सर्वथा पृथक्करण होना ही मोक्ष है।
२८१. भक्तपरिज्ञा, इंगिनीमरण तथा प्रायोपगमन-ये तीन प्रकार के अनशन हैं । जो चरम मरण अर्थात् इन तीनों में से किसी एक का आश्रय लेकर मरता है, वह भाव विमोक्ष है।
२८२. पूर्वोक्त तीन प्रकार के मरणों के दो दो भेद हैं-सपराक्रम, अपराक्रम अथवा व्याघातिम, आनुपूर्विक (अव्याघातिम)। सूत्रार्थ के ज्ञाता मुनि को समाधिमरण को स्वीकार करना चाहिए। (तीन प्रकार के अनशनों में से किसी एक को स्वीकार कर मृत्यु का वरण करना चाहिए।)
२८३. सपराक्रम प्रायोपगमन मरण का आदेश'-पारंपरिक उदाहरण है आर्य वचस्वामी जिन्होंने सपराक्रम प्रायोपगमन अनशन स्वीकार किया था।
२८४. अपराक्रम प्रायोपगमन मरण का पारंपरिक उदाहरण है-आर्य समुद्र का। उन्होंने अपराक्रम प्रायोपगमन अनशन स्वीकार किया था।'
२८५. व्याघातिम मरण-यह सिंह आदि के व्याघात अथवा अन्य किसी व्याघात से होता है। इसका पारंपरिक उदाहरण है- तोसलि आचार्य का, जो महिषी से हत होकर व्याघातिम मरण को प्राप्त हुए थे।
१. आदेश-आचार्य की परंपरा से आगत
अनुश्रुति/प्राचीन परंपरा। २. देखें--परि ६ कथा सं०६। .
३. वही, कथा सं० ७॥ ४. वही, कथा सं० ८ ।
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