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________________ २२६ निर्युक्तिपंचक तदव्यतिरिक्त मार्ग में जलमार्ग, स्थलमार्ग आदि प्राप्त हैं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ये भाव मार्ग हैं | - ४९४४९६. गति शब्द के चार निक्षेप है--नाम, स्थापना, द्रश्य और भाव द्रव्य के दो भेद हैं-आगमतः, नो-आगमत नो आगमतः के तीन भेद हैं ज्ञशरीर भव्यशरीर तद्व्यतिरिक्त तद्व्यतिरिक्त में पुद्गलगति का समावेश होता है। भाव गति के पांच प्रकार हैं- नरकगति, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, देवगति और मोक्षगति सिद्धिगति । यहां मोक्षगति का अधिकार है, इसलिए उसी का विस्तार है । ४९७. इस अध्ययन में मोक्ष, मार्ग और गति का वर्णन है इसलिए इस अध्ययन का नाम मोक्षमार्गगति जानना चाहिए । उनतीसवां अध्ययन : सम्यक्त्व-पराक्रम ४९८-५००. आदानपद के आधार पर इस अध्ययन का नाम सम्यक्त्व - पराश्रम है । इसका गौण नाम है— अप्रमाद । इसको वीतरागश्रुत भी कहा जाता है । अप्रमाद शब्द के चार निक्षेप हैं --- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव द्रव्य के दो भेद हैं-आगमतः, नो-आगमतः । नो-आगमत के तीन भेद हैं-शरीर भव्यशरीर तद्व्यतिरिक्त तद्व्यतिरिक्त अप्रमाद उसे कहते हैं, जो शत्रुजनों के प्रति बरता जाता है । अज्ञान और असंवर आदि में अप्रमाद रखना भावअप्रमाद है । ५०१५०२. श्रुत शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव द्रव्य के दो भेद हैं - आगमतः, नो-आगमतः । नो-आगमतः के तीन प्रकार हैं- ज्ञशरीर, भव्यशरीर, तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त सूत्र पांच प्रकार का है १. अंडजहंस आदि के अंडों से उत्पन्न सूत्र । २. बोंडज - कपास का सूत्र । ३. बालज भेड़ आदि के ऊन का सूत्र । ४. बल्कज ( वाकज) - सन का सूत्र । ५. कीट कीट की लाला से उत्पन्न सूत्र पट्टसूत्र । - ५०३, ५०४, भावश्रुत के दो प्रकार है-सभ्यश्रुत, मिथ्याश्रुत इस अध्ययन में ५०३,५०४. । सम्यक्त का अधिकार है । इसमें सम्यक् श्रुत और अप्रमाद का वर्णन किया हुआ है, इसलिए इसका नाम अप्रमादत है । तीसवां अध्ययन : तपोमागंगति । । ५०५, ५०६. तप शब्द के चार निक्षेप हैं—नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव द्रव्य के दो भेद हैं - आगमतः, नो-आगमतः । नो-आगमतः के तीन भेद हैं-शशरीर, भव्यशरीर तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त तप में पंचाग्नि आदि तप आते हैं। भाव तप दो प्रकार का है- बाह्य और आभ्यन्तर । , ५०७,५०८. मार्ग और गति शब्द के भी बार-चार निक्षेप हैं, जो पूर्व निर्दिष्ट हैं । प्रस्तुत प्रसंग में भावमार्ग - सिद्धिगति को जानना चाहिए । इस अध्ययन में दो प्रकार के तप तथा मार्ग और गति का वर्णन है इसलिए इस अध्ययन का नाम तपोमागंगति है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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