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________________ २१६ निर्युपिंचक ३३६,३३७. ब्रह्मदत्त काम्पिल्यपुर, गिरितटक, चम्पा, हस्तिनापुर, साकेत, समकटक, अवश्यानक, वंशीप्रासाद, समकटक आदि नगरों में घूमता हुआ अटवी में पहुंचा। वहां पर तृषा से अभिभूत हो गया । उसने वरधनु से कहा तो वह ब्रह्मदत्त को एक वटवृक्ष की छाया में लेटाकर बोला - 'मैं एक संकेत दूंगा तब तुम यहां से पलायन कर जाना ।' यह कहकर वह स्वयं पानी की खोज में निकला । वह जल लेकर वापस लौट रहा था तब दीर्घपृष्ठ के अनुचर कुमार को खोजते हुए वहां पहुंच गए। उन्होंने वरधुन को पकड़ लिया फिर उसे बंधन से बांधकर आक्रोश दिखलाया, दुष्टवचनों से उसकी भर्त्सना की । ३३८. अनुचरों ने वरधनु को पीटते हुए पूछा - 'बोलो, कुमार कहां है ? तुम उसे कहां ले गए हो ?' वरधनु ने एक संकेत किया और पानी के साथ एक विरेचन की गुटिका ले ली । उस गुटिका से बेहोशी आ गई और मुंह में भाग आ गए। उसने कपटमृत्यु का वरण कर लिया । गुप्तचरों ने उसे मृत समझकर छोड़ दिया । ३३९. इधर कुमार वरधनु की सांकेतिक भाषा को समझकर, भयभीत होता हुआ उत्पथ से पलायन कर गया । मार्ग में एक देव ने उसके सामर्थ्य की परीक्षा करने के लिए स्थविर का रूप बनाकर उसे धोखे में डाल दिया । ३४०. वहां से घूमता हुआ कुमार वटपुर, ब्रह्मस्थल, वटस्थल, कोशाम्बी, वाराणसी, राजगृह, गिरिपुर, मथुरा और अहिछत्रा आदि नगरों में पहुंचा । ३४१. कुमार अहिच्छत्रा से चला और एक महान् अटवी में पहुंच गया। वहां उसने आभरण, वस्त्र एवं गुणों से युक्त एक वनहस्ती देखा। वह उस पर आरूढ़ हो गया। हाथी कुमार को भयंकर वन में ले गया । कुमार अटवी से बाहर निकलकर वटपुर गया । वटपुर से श्रावस्ती के लिए प्रस्थान किया । चलते-चलते एक छोटे गांव में पहुंचा । ३४२. नदी और अरण्य गहन होते हैं पर पुरुषों के हृदय उससे भी अधिक गहन होते हैं । आप अपना पुण्यपत्त' दें। हमारे प्रिय पुत्र हुआ है । ३४३. वहां से कुमार सुप्रतिष्ठानपुर में पहुंचा। वहां भिकुंडी राजा से निष्कासित कन्या कुसकुण्डी जितशत्रु राजा के पास से मथुरा से अहिच्छत्रा जा रही थी। वह बीच के एक गांव में मिली । ३४४,३४५. इन्द्रपुर में शिवदत्त तथा रुद्रपुर में विशाखदत्त- इन दोनों की दो पुत्रियां कुमार को विट वेष में प्राप्त हुईं। उसे वहां राज्य भी प्राप्त हुआ। वहां से कुमार राजगृह, मिथिला, हस्तिनापुर, चंपा, श्रावस्ती आदि नगरों में घूमा । यह कुमार ब्रह्मदत्त के नगर भ्रमण ( नगर हिडी) का अवलोकन है । ३४६. कुमार को चक्ररत्न की उत्पत्ति हुई । वह दिविजयी बन गया । दीर्घपृष्ठ राजा का रोष भी शांत हो गया । (देवताओं द्वारा कल्पवृक्ष के फूलों की माला अर्पित करने पर) कुमार को जातिस्मृति हुई कि मैं नलिनीगुल्म में देव रूप में उत्पन्न हुआ था । १. आनन्द से हृत वस्त्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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