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________________ उत्तराध्ययन निर्युक्ति तेरहवां अध्ययन : चित्रसंभतीय द्रव्य ३२२,३२३. चित्र, संभूत शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । निक्षेप के दो भेद हैं-आगमतः, नो-आगमतः । नो-आगमतः के तीन भेद हैं-ज्ञशरीर, भव्यशरीर और तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त के तीन भेद हैं- एकभविक, बद्धायुष्क और अभिमुख - नामगोत्र | २०५ उन ३२४. चित्र और संभूत के आयुष्य का वेदन करने वाले भावतः चित्र और संभूत हैं । दोनों के नाम से समुत्थित यह अध्ययन 'चित्रसंभूतीय' है । ३२५. साकेत नगर में चन्द्रावतंसक राजा का पुत्र था मुनिचन्द्र । सागरचन्द्र के साथ मुनिचन्द्र प्रव्रजित होकर श्रमण बन गया । ३२६. अटवी में तृष्णा और क्षुधा से व्याकुल श्रमण (मुनिचन्द्र ) को देखकर गोपालकों ने प्राक अन्न से उसे प्रतिलाभित किया। फिर मुनि के उपदेश से वे चारों गोपालक पुत्र बोधि को प्राप्त हो गए । ३२७. मुनि के मलदिग्ध शरीर को देखकर दो गोपालक पुत्रों को घृणा हो गई । जुगुप्सा करने के कारण वे दोनों मरकर दशार्ण जनपद में दास रूप में उत्पन्न हुए और शेष दो गोपालकपुत्र इषुकारपुर के ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए। यहां ब्रह्मदत्त का अधिकार है । ३२८,३२९. पांचाल जनपद का राजा ब्रह्म, काशी जनपद का राजा कटक, कुरु जनपद का राजा कणेरदत्त, अंग जनपद का राजा पुष्पचूल, कौशल जनपद का राजा दीघं - ये पांचों मित्र राजा थे । इन सभी ने एक ही समय में पाणिग्रहण किया था अर्थात् ये सभी समवयस्क थे । ( राजा ब्रह्म के मर जाने पर) चारों मित्र राजा एक-एक वर्ष उस राज्य की सार-संभाल करने के रहने लगे । लिए वहां ३३०. ब्रह्मराज के चार स्त्रियां थीं इन्द्रश्री, इन्द्रयशा, इन्द्रवसु और चुलनीदेवी । चुलनी देवी ने ब्रह्मदत्त नामक पुत्र को जन्म दिया । उसी दिन धनु नामक सेनापति के वरधनु नामक पुत्र हुआ । कन्या भद्रा, कन्या देवी, नागदत्ता, ३३१-३५. चित्र राजा की कन्या विद्युत्माला और विद्युत्मती, चित्रसेनक की पन्थक राजा की कन्या नागयशा, कीर्तिसेन की कन्या कीर्तिमती, यक्षहरिल राजा की यशोमती और रत्नवती, चारुदत्त राजा की कन्या वच्छी, कात्यायनगोत्रीय वृषभ राजा की कन्या शिला, धनदेव, वणिक्, वसुमित्र, सुदर्शन और मायावी दारुक ये चारों कुक्कुट युद्ध के प्रसंग में परस्पर मिले थे, वहां की पुस्ती नामक कम्या, पोत राजा की कन्या पिंगला, सागरदत्त वणिक् की कन्या दीपशिखा, काम्पिल्य की पुत्री मलयवती, सिन्धुदत्त की कन्या वनराजि और सोमा, सिन्धुसेन की कन्या वानीरा, प्रद्युम्नसेन की कन्या प्रतिका- ये सभी ब्रह्मदत्त की रानियां थीं। हरिकेशा, गोदत्ता, करेणुदत्ता, करेणुप्रदिका, कुंजरसेना, करेणुसेना, ऋषिवृद्धि, कुरुमती - ये आठों ब्रह्मदत्त के अन्तःपुर की प्रधान रानियां थीं। महारानी कुरुमती स्त्रीरत्न थी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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