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________________ उत्तराध्ययन नियुक्ति २६६. दूसरे नमिराजा भी शतशः गुण समन्वित राज्य को छोड़कर, परिग्रह का त्याग करके प्रवजित हुए। यहां दूसरे नमिराजा का अधिकार है। २६६।१. करकंड आदि चारों राजाओं का पुष्पोत्तर विमान से च्यवन, एक-एक हेतू से प्रतिबोध, प्रव्रज्या, कैवल्य-प्राप्ति तथा सिद्धिगमन-ये सारे एक ही समय में अर्थात समसमय में हुए २६७. बहुत कंकणों का शब्द सुनकर तथा एक कंकण का अशब्द जानकर मिथिलाधिपति नमि राजा ने अभिनिष्क्रमण कर दिया । २६८. मंजरियों, पल्लवों और पुष्पों से उपचित एक मनोभिराम आम्रवृक्ष की (बसंत में) ऋद्धि और (पतझड़ में) अऋद्धि को देखकर गधार राजा न मुनि धर्म स्वीकार कर लिया। २६९. दुर्मुख ने करकंडु से कहा- 'तुम राज्य, राष्ट्र, पुर, अन्तःपुर आदि का त्याग कर प्रवजित हुए हो तो फिर संचय क्यों करते हो ? (कंडूयक को छिपाकर क्यों रखते हो ?)। २७०. तब नमि ने दुर्मुख से कहा - 'तुम्हारे पैतृक राज्य में अनेक कर्मकर थे, जो दूसरों के अपराध, दोष आदि का ध्यान रखते थे। प्रव्रज्या लेकर तुमने उन कर्मकरों के कृत्य को छोड दिया । आज तुम दूसरों का दोष देखने वाले कैसे बन गए ?' २७१. तब गंधारराजा ने नमि से कहा-'तुम सब कुछ त्याग कर मोक्ष के लिए प्रयत्नशील बने हो तथा आत्मा से आबद्ध कर्मों का सर्वथा नाश करने वाले हो तो फिर तुम दूसरों की गर्दा क्यों करते हो?' २७२. तब करकंडु ने कहा- 'जिन्होंने मोक्षमार्ग को स्वीकार किया है, जो मुनि हैं, ब्रह्मचारी हैं-ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना करने वाले हैं, वे यदि अहित का निवारण करते हैं तो उसे दोष नहीं कहा जा सकता है।' दसवां अध्ययन : द्रुमपत्रक २७३,२७४. द्रुम शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य द्रुम के दो निक्षेप हैं-आगमत: और नो-आगमतः । नो-आगमत: द्रम के तीन प्रकार हैं-ज्ञशरीर, भव्यशरीर और तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त के तीन भेद हैं-एकभविक, बद्धायुष्क और अभिमुखनामगोत्र । २७५. द्रुम आयुष्य, नाम, गोत्र का वेदन करता हुआ भावद्रुम होता है। इसी प्रकार पत्र शब्द के भी चार निक्षेप होते हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । २७६. आयुष्य को द्रुमपत्र की उपमा दी गई है। जैसे द्रुमपत्र काल का परिपाक होने पर स्वतः वक्ष से गिर जाता है अथवा उपक्रम--- वायु आदि के द्वारा वृक्ष से अलग हो जाता है, वैसे ही आयुष्य की स्थिति पूरी होने पर अथवा आयुष्य का उपक्रम पूर्ण होने पर प्राणी मर जाता है। इस अध्ययन के प्रारम्भ में द्रमपत्र शब्द है, इसलिए इस अध्ययन का नाम द्रुमपत्रक है । २७७. मगधदेश के राजगह नगर से भगवान महावीर ने शाल, महाशाल शिष्यों को गौतम स्वामी के साथ भेजा । वे वहां से विहार कर पृष्ठचंपा पहुंच गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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