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________________ २१२ नियुक्तिपंचक २७८. पृष्ठचंपा में गागलि अपने माता-पिता के साथ प्रवजित हुआ। मार्ग में तीनों को केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। वे चंपापुरी पहुंचे । गौतम स्वामी ने भगवान को वन्दन किया पर उन तीनों ने वन्दन नहीं किया । २७९-८१. चंपापुरी के पुण्यभद्र चैत्य में यशस्वी जगनायक भगवान महावीर ने श्रमणों को आमंत्रित कर कहा--'आठ प्रकार के कर्मों को मथने वाले, स्वभावत: विशुद्धलेश्या वाले तथा कृतकृत्य भगवान् ऋषभ की निर्वाण भूमि अष्टापद पर्वत है । वे भरत के पिता ऋषभ तीन लोक में आलोक फैलाकर यशस्वी बने । जो अष्टापद पर्वत पर आरोहण कर भगवान की वंदना-स्तुति करता है, वह मुनि चरमशरीरी होता है। २८२. वैताढ्यशिखर के पास सिद्धपर्वत है । वहां साधु की ही अवस्थिति होती है, असाधु की नहीं। २८३. चरमशरीरी साधु ही उस पर्वत पर चढ़ सकता है, दूसरा नहीं । यह उदाहरण भगवान् महावीर ने दिया था। २८४. भगवान् के वचन को सुनकर प्रथितकीर्ति गौतम वहां गए और उस श्रेष्ठ पर्वत पर चढ़कर जिनभगवान की प्रतिमाओं को वन्दना की। २८५. उस समय सर्वऋद्धिसम्पन्न वैश्रमण देव अपनी परिषद के साथ वहां आया। उसने चैत्यों की वन्दना कर भगवान गौतम को वन्दन किया। २८६. प्रथितकीर्ति गौतम स्वामी ने वहां पुण्डरीक वृत्तांत की प्रज्ञापना की और दसमभक्त (चार दिन के उपवास) के पारणे में कौडिन्य तापस को प्रव्रजित किया। २८७,२८८. उस वैश्रमण की सभा में अल्पकर्मा इंद्र ने गौतम द्वारा प्ररूपित पुण्डरीक का वृत्तान्त सुना । उससे बोध प्राप्त कर वल्गुविमान से च्युत हो वह इन्द्र तंबवन में धनगिरि की पत्नी सुनन्दा का पुत्र हुआ। २८९-९९. दत्त, कौडिन्य और शैवाल-ये तीनों तापस पांच-पांच सौ परिवार के साथ अष्टापद पर्वत पर चढ़ने के लिए आए । कौडिन्य तापस चतुर्थ भक्त के पारणे में कंड़ आदि सचित्त आहार करता । (वह अष्टापद के नीचे की मेखला तक ही चढ़ पाया ।) दत्त तापस पारणे में अचित्त आहार करता । (वह पर्वत की मध्य मेखला तक ही चढ़ पाया ।) तीसरा शैवाल तापस अष्टम भक्त के पारणे में शुष्क शैवाल का आहार करता । (वह पर्वत की ऊपरितन मेखला तक ही चढ़ पाया।) गौतम स्वामी की ऋद्धि देखकर वे तीनों विगतमोह अनगार होकर प्रवजित हो गए । प्रथम तापस को क्षीर भोजन के चितन से, दूसरे को परिषद् देखने से तथा तीसरे को जिन भगवान के दर्शन करने से केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। सभी गौतम के साथ भगवान महावीर को वंदना करने उपस्थित हए । जब तीनों तापस केवली-परिषद् की ओर जाने लगे तब गौतम स्वामी ने कहा-'इध भगवान को वंदन करो।' गौतम के ऐसा कहने पर भगवान् ने गौतम से कहा-'गौतम ! ये तो कृतकृत्य हो गए हैं। भगवान् के वचन सुनकर गौतम दुःखी हुए। वे सोचने लगे-मुझे केवलज्ञान क्यों नहीं हो रहा है? तब भगवान् बोले-'गौतम ! तुम मेरे चिरसंसष्ट हो, चिरपरिचित हो, चिरकाल से अनुगत हो । जब तुम्हें देह का भेदज्ञान होगा तब हम दोनों एक समान हो जायेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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