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________________ १५२ २५६. २५७. २५८. २५९. २६०. २६१. २६३. पव्वज्जानिक्खेवो, भावम्मि उ करकडू नमीराया वसभे य इंदकेऊ, करकंडु 'दुम्मुहस्स गोट्ठगणस्स दरिता Jain Education International १. अत्थि (ह) । २. ३. दुम्मुहस्सा (शां) । ४. से सुजायं (शां) । चविहो पव्वज्जा, कलिंगेसु, विदेहेसु ०कंड ( चू, ला) । सहइ ॥ १७ पोराण य यदप्पो, गलतनयणो चलंत वसहोट्टो | सो चेव इमो वसभो, पड्डु - परिघट्टणं २६२. जो 'इंदकेउं समलंकियं तु दट्ठे पडतं पविलुप्पमाणं । रिद्धि अरिद्धि समुपेहिया ण, पंचालराया वि समिक्ख धम्मं ॥ २६२।१. वुद्धिं च हाणि च ससीव दट्ठ, पूरावरेगं च महानईणं । अहो अनि अधुवं च नच्चा, पंचालराया वि समिवख धम्मं " ।। मिहिलापतिस्स नमिणो, छम्मासातंक वेज "डिहो । कत्तिय सुविणग - दंसण, अहि-मंदर नंदिघोसे य ।। 1 'सेतं सुजातं ' सुविभत्तसिंगं, जो पासिया वसहं गोम रिद्धि अरिद्धि 'समुपेहिया णं ५, कलिंगराया वि समिवख धम्मं ।। स मज्झे, जस्स मम्मि | वि दत्तवसभा, सुतिक्खसिंगा समत्यो वि । निर्युक्तिपंचक दव्वे ॥ अन्न'- तिथिगा आरंभपरिग्गहच्चाओ ॥ पंचालेसु गंधारे ५. समुपेहमाणो (शांटीपा प० ३०५ ) । ६. २६०,२६१ ये दोनों गाथाएं टीका में नियुक्ति क्रम में नहीं हैं किन्तु व्याख्या में इनका संकेत मिलता है । चूर्णि में भी 'सेयं सुजायं गाहाओ तिन्नि' के उल्लेख के साथ इन गाथाओं को स्वीकृत किया है । सभी आदर्शों में ये प्राप्त हैं । विषय की क्रमबद्धता की दृष्टि से भी ये निगा प्रतीत होती हैं । वलए अंबे य पुप्फिए बोही । गंधाररण्णो य ॥ य', अ नमिस्स य य नग्गती || ७. ० केऊ अलं० (ह) । ८. दिट्ठ (ह) । ९. समिक्ख त्ति आर्षत्वात् समीक्षते, पर्यालोचयति अनेकार्थत्वादङ्गीकुरुते ( उशांटी प० ३०५ ) | १०. यह गाथा टीका में निर्युक्ति गाथा के क्रम में मिलती है। ला और ह प्रति में तथा चूर्णि में यह गाथा निर्दिष्ट नहीं है । ऐसा संभव लगता है कि प्रसंगवश यह गाथा बाद जोड़ दी गई है। ११. विज्ज० (शां) । १२. सुमिण (शां) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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