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नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवक्षण क्षुल्लिकाचार अध्ययन की नियुक्ति (१५४-६१) में आचार तथा उत्तराध्ययन के चतुरंगीय अध्ययन की नियुक्ति (गा. १४४-५८) में अंग का विशद वर्णन मिलता है। इससे स्पष्ट है कि आचारांग से पूर्व दशवैकालिक और उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना हो चुकी थी।
३. उत्तराध्ययननियुक्ति में 'विणओ पुबुद्दिट्ठो' (गा.२९) का उल्लेख दशवकालिक की विनयसमाधि की नियुक्ति (गा. २८६-३०३) की ओर संकेत करता है। इस उद्धरण से स्पष्ट है कि दशवैकालिक के बाद उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना हुई।
४. 'कामा पुबुद्दिट्ठा (उनि २००) का उद्धरण दशवैकालिकनियुक्ति (गा. १३७-४१) में वर्णित काम शब्द की व्याख्या की ओर संकेत करता है। इससे स्पष्ट है कि उत्तराध्ययन से पूर्व दशवैकालिकनियुक्ति की रचना हुई।
५. सूत्रकृतांगनियुक्ति (गा. १८३) में 'आयार सुतं भणियं' उल्लेख से स्पष्ट है कि दशवैकालिक और उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना उससे पूर्व हो गयी थी क्योंकि आचार का वर्णन दशनि १५४-६१ में तथा श्रुत का वर्णन उनि २९ में है।
६. आवश्यकनियुक्ति में वर्णित निह्नववाद की कुछ गाथाएं शब्दश: उत्तराध्ययननियुक्ति में मिलती हैं।
७. उत्तराध्ययननियुक्ति में वर्णित करण की व्याख्या वाली कुछ गाथाएं सूत्रकृतांगनियुक्ति में भी मिलती हैं।
८. सूत्रकृतांगनियुक्ति में 'गंथो पुवुद्दिट्ठो' (गा० १२७) का उल्लेख उत्तराध्ययननियुक्ति (गा० २३४-४०) में वर्णित ग्रंथ शब्द की व्याख्या की ओर संकेत करता है। इस उद्धरण से स्पष्ट है कि सूत्रकृतांगनियुक्ति से पूर्व उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना हुई।
९. आचारांगनियुक्ति (गा. ३३६) में वर्णित 'जह वक्कं तह भासा' का उल्लेख दशवकालिक की 'वक्कसुद्धि' अध्ययन की नियुक्ति की ओर संकेत करता है।
१०. सूत्रकृतांगनियुक्ति (गा. ९९) में 'धम्मो पुवुद्दिट्ठो' का उल्लेख दशवैकालिकनियुक्ति (गा. ३६-४०) में वर्णित धर्म शब्द की व्याख्या की ओर संकेत करता है। इससे स्पष्ट है कि सूत्रकृतांगनियुक्ति की रचना बाद में हुई।।
११ 'जो होति मोक्खो, सा उ विमुत्ति पगतं' आचारांगनियुक्ति (गा.३६५) का यह उल्लेख उत्तराध्ययननियुक्ति में वर्णित मोक्ष की व्याख्या की ओर संकेत करता है।
उपर्युक्त उल्लेखों से स्पष्ट है कि नियुक्तियों की रचना का कम वही है, जिस कम से उन्होंने नियुक्तियां लिखने की प्रतिज्ञा की है। नियुक्तियों के कर्तृत्व एवं उसके रचनाकाल के बारे में हम विस्तार से अगले खंड में चर्चा करेंगे। आचार्य गोविंद एवं उनकी नियुक्ति
आचार्य भद्रबाहु द्वारा लिखित नियुक्तियों के अतिरिक्त गोविंद आचार्य कृत गोविंदनियुक्ति का उल्लेख अनेक स्थानों पर मिलता है। आवश्यकचूर्णि में दर्शनप्रभावक ग्रंथ के रूप में गोविंदनियुक्ति का उल्लेख हुआ है। निशीथ चूर्णि में उनका परिचय इस प्रकार मिलता है.... १. निभा ३६५६, चू. पृ. २६० ।
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