________________
नियुक्तिपंचक पायी है। इसकी प्रतियों में गाथाओं तथा पाठ का बहुत अंतर मिलता है। इसमें ८४ आगमों के संबंध में उल्लेख है अत: विद्वान् लोग इसे परवर्ती एवं असंगत रचना मानते हैं। सरदारशहर के गधैया हस्तलिखित भंडार में महेशनियुक्ति की प्रति भी मिलती है किन्तु यह खोज का विषय है कि यह किस ग्रंथ पर कब और किसके द्वारा लिखी गई?
इन नियुक्तियों के अतिरिक्त गोविंद आचार्यकृत गोविंदनियुक्ति का उल्लेख भी अनेक स्थलों पर मिलता है। गोविंदनियुक्ति में उन्होंने एकेन्द्रिय जीवों में जीवत्व-सिद्धि का प्रयत्न किया है क्योंकि अप्काय में जीवत्व-सिद्धि के प्रसंग में आचारांग चूर्णि में उल्लेख मिलता है कि 'जं च निज्जुत्तीए आउक्कायजीवलक्खणं जं च अज्जगोविंदेहि भणियं गाहा।' इस उद्धरण से स्पष्ट है कि उन्होंने आचारांग के प्रथम अध्ययन के आधार पर नियुक्ति लिखी होगी। आचार्य भद्रबाहु द्वारा उल्लिखित नियुक्तियों के अतिरिक्त अन्य नियुक्तियों की निश्चित संख्या के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।
वर्तमान में उपलब्ध नियुक्तियों में कुछ नियुक्तियां स्वतंत्र रूप से मिलती हैं, जैसे—आचारांग, सूत्रकृतांग की नियुक्तियां। कुछ नियुक्तियों के आंशिक अंश पर छोटे भाष्य मिलते हैं, जैसेदशवैकालिक और उत्तराध्ययन की नियुक्ति। कुछ नियुक्तियों पर बृहद् भाष्य हैं पर दोनों का स्वतंत्र अस्तित्व मिलता है,जैसे—आवश्यकनियुक्ति, पिंडनियुक्ति, ओघनियुक्ति आदि। कुछ नियुक्तियां ऐसी हैं, जो भाष्य के साथ मिलकर एक ग्रंथ रूप हो गयी हैं, जिनको आज पृथक् करना अत्यंत कठिन है, जैसेनिशीथ, व्यवहार, बृहत्कल्प आदि की नियुक्तियां । बृहत्कल्पभाष्य की टीका में आचार्य मलयगिरि इसी बात का उल्लेख करते हैं।' नियुक्ति-रचना का क्रम
आवश्यकनियुक्ति में आचार्य भद्रबाहु ने नियुक्तियां लिखने की प्रतिज्ञा का क्रम इस रूप में प्रस्तुत किया है --१. आवश्यक २. दशवैकालिक ३. उत्तराध्ययन ४. आचारांग ५. सूत्रकृतांग ६. दशाश्रुतस्कंध ७. बृहत्कल्प ८. व्यवहार ९. सूर्यप्रज्ञप्ति १०. ऋषिभाषित ।
पंडित दलसुखभाई मालवणिया का अभिमत है कि भद्रबाहु ने आवश्यकनियुक्ति में जिस क्रम से ग्रंथों की नियुक्तियां लिखने की प्रतिज्ञा की है, उसी क्रम से नियुक्तियों की रचना हुई है। इस कथन की पुष्टि में कुछ हेतु प्रस्तुत किए जा सकते हैं
१. आचारांगनियुक्ति गा. १७७ में ‘लोगो भणिओ' का उल्लेख है। इससे आवश्यकनियुक्ति (गा. १०५७,१०५८) में चतुर्विंशतिस्तव के लोगस्स पाठ की व्याख्या की ओर संकेत है।
२. आयारे अंगम्मि य पुबुद्दिट्ठो' उल्लेख आचारांगनियुक्ति (गा. ५) में है। दशवैकालिक के
१. निभा ५५७३, बृभा ५४७३ टी. पृ. १४५२, पंकभा ४२० । २. निचू ३ पृ. २६०। ३. बृभापीटी. पृ.२ सूत्रस्पर्शिकनियुक्तिर्भाष्यं चैको ग्रंथो जात:। ४. आवनि ८४, ८५ ।। , गणधरला . १२.१४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org