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आवश्यक नियुक्ति
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९४. जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी न हु चंदणस्स।
एवं खु नाणी चरणेण हीणो, नाणस्स भागी न हु सुग्गतीए । हतं नाणं कियाहीणं, हता अन्नाणओ किया। पासंतो पंगुलोरे दड्डो, धावमाणो या अंधओ ।। संजोगसिद्धीय फलं वयंति, न हु एगचक्केण रहो पयाति। अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा ॥ णाणं पयासगं सोहओ तवो संजमो य गुत्तिकरो। तिण्हं पि समाजोगे, मोक्खो जिणसासणे भणितो' ।। भावे खओवसमिते, दुवालसंगं पि होति सुतनाणं । केवलियनाणलंभो, नन्नत्थ खए कसायाणं ॥ अट्टण्हं पगडीणं, उक्कोसठिईइ वद्रमाणो उ।
जीवो न लभति सामाइयं चउण्हं पि एगतरं॥ १००. सत्तण्हं पगडीणं१, अभिंतरओ२२ तु३ कोडिकोडीए ।
काऊण सागराणं, जइ.५ लहति चउण्हमण्णतरं६ ॥ १००/१. पल्लग-गिरि-‘सरि-उवला५७, पिवीलिया पुरिस पह- जरग्गहिया।
कोद्दव जल वत्थाणि य, सामाइयलाभदिटुंता ॥
१. स्वो १००/११५५ । २. पंगलो (अ) ३. x (अ)। ४. स्वो. १०१/११५६। ५. "सिद्धीइ (म, रा, ला, हा, दी)। ६. स्वो १०२/११६२। ७. स्वो १०३/११६६। ८. स्वो १०४/११७७। ९. "ठिइइ (हा), ठिईए (म)। १०. स्वो १०५/११८३। ११. पगदीणं (ला)। १२. अब्भंतरओ (अ, ला)। १३. य (स)। १४. कोडीणं (स, हा, दी), 'कोडको (स्वो)। १५. ठिई (हाटीपा, मटीपा, लापा, बपा)। १६. चउण्हमेगतरं (ला), स्वो १०६/११९० ।
१७. सिरि (अ, रा), सरिओवल (म)। १८. पहं (ला)। १९. स्वो १०७/१२०१, इस गाथा का चूर्णि में कोई संकेत एवं व्याख्या नहीं है।
विशेषावश्यक भाष्य में इस गाथा की व्याख्या २१ गाथाओं में है। प्रस्तुत गाथा में सामायिक के लाभ से सम्बन्धित नौ दृष्टांतों का उल्लेख है। यहां आवश्यकनियुक्ति के विषयक्रम में यह गाथा असम्बद्ध सी लगती है अतः ऐसा अधिक संभव लगता है कि द्वारगाथा के रूप में भाष्यकार ने यह गाथा लिखकर उसकी व्याख्या की हो और कालान्तर में यह गाथा नियुक्ति गाथा के रूप में जुड़ गई हो । चूर्णिकार के समक्ष यह गाथा निगा के रूप में नहीं थी अन्यथा वे इतनी महत्त्वपूर्ण गाथा की व्याख्या या संकेत किये बिना नहीं रहते। बृहत्कल्पभाष्य (गा. ९६) में सम्यक्त्व-प्राप्ति के प्रसंग में पल्यक को छोड़कर शेष आठ दृष्टान्त दिए गए हैं। वह गाथा कुछ अंतर के साथ इस प्रकार है
नदि-पह-जर-वत्थ-जले, पिवीलिया पुरिस कोद्दवा चेव। सम्मइंसणलंभे, एते अट्ठ उ उदाहरणा॥
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