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आवश्यक नियुक्ति
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७९. ते वंदिऊण सिरसा, अत्थपुहत्तस्स' तेहिं कहियस्स।
सुतनाणस्स भगवतो, निज्जुत्तिं कित्तइस्सामि ।। आवस्सगस्स दसकालियस्स तह उत्तरज्झमायारे । सूयगडे निजुत्तिं, वोच्छामि तहा दसाणं च ।। कप्पस्स य निज्जुत्तिं, ववहारस्सेव परमनिउणस्स।
सरियपण्णत्तीए. वोच्छं इसिभासिताणं च ।। ८१/१. एतेसिं निजुत्तिं, वोच्छामि अहं जिणोवदेसेणं।
आहरण-हेतु-कारण-पय निवहमिणं समासेणं ।। ८१/२. सामाइयनिज्जुत्तिं, वोच्छं उवदेसितं गुरुजणेणं।
आयरियपरंपरएण, आगतं आणुपुव्वीए । निजुत्ता ते अत्था, जं बद्धा तेण होति निज्जुत्ती।
तह वि य इच्छावेती', विभासितुं सुत्तपरिवाडी ॥ ८३. तव-नियम-नाणरुक्खं, आरूढो केवली अमितनाणी।
तो मुयति नाणवुढेि, भवियजणविबोहणट्ठाए । ८४. तं बुद्धिमएण पडेण, गणहरा गेण्हितुं१२ निरवसेसं।
तित्थगरभासिताई, गंथंति तओ पवयणट्ठा३ ।।
१. “पुहत्थस्स (अ) २. कित्तिस्सामि (अ), स्वो ८३/१०६६ । ३. मोऽलाक्षणिकः (दी)। ४. स्वो ८४/१०७१। ५. स्वो ८५/१०७२, ८०, ८१ इन दोनों गाथाओं का संकेत
चूर्णि में नहीं है किन्तु संक्षिप्त व्याख्या है। ६. स्वो ८६/१०७३। ७. स्वो ८७/१०७७, ८१/१, २-इन दोनों गाथाओं का चूर्णि
में कोई उल्लेख्न नहीं है। सभी टीकाओं एवं भाष्य में ये गाथाएं निगा के क्रम में हैं। नियुक्तिकार ने ७९-८१ तक की गाथाओं में नियुक्तिकथन की प्रतिज्ञा तथा जिन सूत्रों पर नियुक्ति लिखनी है, उनका उल्लेख कर दिया है अतः ये गाथाएं
व्याख्यात्मक एवं पुनरुक्त सी लगती हैं । यहां इन गाथाओं की प्रासंगिकता नहीं लगती। इनको निगा न मानने पर भी चालू विषयवस्तु के क्रम में कोई अंतर नहीं आता। दूसरी बात, आचार्य भद्रबाहु आवश्यकनियुक्ति लिखने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं वहां सामायिकनियुक्ति नाम का उल्लेख स्पष्ट करता है कि ये गाथाएं बाद में जोड़ी गई हैं। इच्छावेइ (म, ब, हा, दी)। विभासियं (अ)। 'परिवाडि (बपा, मटीपा, हाटीपा), स्वो ८८/१०८२ । स्वो ८९/१०९११ गिहिउं (अ, म, हा, दी)। स्वो ९०/१०९२।
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