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खाने की वस्तुएं रखता तब वे दोनों बंदर भूख मिटाने के लिए उस मूर्ति पर चढ़कर खाद्य वस्तुएं खाते। यह क्रम अनेक दिनों तक चला। बंदर उस प्रतिमा से खेलने लगे ।
१. आवनि. ५८८/१५, आवचू. १ पृ. ५५१, हाटी. १ पृ. २८१, मटी. प. ५२२ ।
२. आवनि. ५८८ / १५, आवचू. १ पृ. ५५१, हाटी. १ पृ. २८१, २८२, मटी. प. ५२२ ।
परि. ३ :
एक दिन उसने अपने धूर्त मित्र के दोनों बच्चों को भोजन करने बुलाया और उन्हें गुप्त स्थान में छिपा दिया। जब बालक लौटकर घर नहीं पहुंचे तो पुत्र - दुःख से संतप्त होकर उन्हें लेने के लिए वह धूर्त्त अपने मित्र के घर पहुंचा। उसने वह मिट्टी की प्रतिमा वहां से हटवा दी और उसके स्थान पर मित्र को खड़ा कर दिया। बंदर उछल-कूद मचाते हुए प्रतिमा समझकर उस पर चढ़ने लगे। बालकों के बारे में पूछने पर वह सरल मित्र बोला—‘मित्र ! तुम्हारे दोनों पुत्र बंदर हो गए हैं।' धूर्त मित्र बोला- 'आश्चर्य है, पुत्र बंदर कैसे बन गए?' वह बोला- 'जैसे दुर्भाग्यवश निधान कोयला बन गया, वैसे ही ये बालक बंदर बन गए।' धू ने समझ लिया कि इसे निधान वाली घटना का पता चल गया है, अब यदि मैं विवाद करूंगा तो यह मुझे राजकुल में ले जाएगा। कपट मित्र ने निधान का आधा हिस्सा उसे लौटा दिया। तब उसने भी उसको दोनों बालक सौंप दिए । '
१७६. शिक्षाशास्त्र ( धनुर्वेद )
एक कुलपुत्र धनुर्वेद की विद्या में कुशल था। वह कहीं भी जाता तो धनिक पुत्रों को एकत्रित कर धनुर्वेद की शिक्षा देता था । उसने प्रचुर धन अर्जित कर लिया । धनिक पुत्रों के पिताओं को यह बात चुभने लगी कि इसने हमारे पुत्रों से बहुत धन ले लिया है। उन्होंने सोचा - 'जब यह यहां से जायेगा, तब हम इसको मार डालेंगे। इसको किसी भी उपाय से धन नहीं ले जाने देंगे।' उस कुलपुत्र को यह षड़यंत्र ज्ञात हो गया। तब उसने अपने परिचितों को यह संदेश कहलवाया कि मैं अमुक दिन को रात में गोबर के उपले नदी में डालूंगा, तुम उनको ग्रहण कर सुरक्षित रख देना । उसने गोबर में सारा धन डालकर उपल बना दिए। एक दिन उसने धनिक पुत्रों से कहा - 'हमारी यह कुल - विधि है, कि हम पर्व - तिथि को नदी में उपले डालते हैं।' बंधुजन उन उपलों को लेकर गांव चले गए। दूसरे दिन उसने धनिकपुत्रों और उनके पितृजनों को बुलाकर कहा- 'मैं अपने गांव जा रहा हूं। मेरे पास इन कपड़ों के सिवाय और कुछ भी नहीं है। जब उन्होंने उसके पास कुछ नहीं देखा तो उसे मारने का विचार छोड़ दिया । उसने अपनी औत्पत्तिकी बुद्धि से धन और जीवन दोनों बचा लिए ।
१७७. अर्थशास्त्र
एक वणिक् के दो पत्नियां थीं। एक पुत्रवती तथा दूसरी वन्ध्या थीं । पुत्र पर दोनों का समान स्नेह था। एक बार वणिक् अपनी पत्नियों के साथ सुमतिनाथ की जन्मभूमि में चला गया। किसी कारण से वहां वणिक् की मृत्यु हो गयी । पुत्र और सम्पत्ति के लिए दोनों में विवाद हुआ। न्याय के लिए दोनों राजकुल में पहुंचीं पर निपटारा नहीं हुआ । तीर्थंकर सुमतिनाथ की मां सुमंगला देवी ने कहा - 'इस समस्या का समाधान मैं करूंगी।' रानी ने दोनों स्त्रियों को बुलाकर कहा - 'कुछ समय पश्चात् मेरे कोख से एक पुत्र
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