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________________ आवश्यक नियुक्ति १७३. नाणक एक व्यक्ति मोहरों से भरी नौली सेठ के पास धरोहर के रूप में रखकर परदेश चला गया। सेठ ने असली मोहरें निकालकर उसमें नकली मोहरें भर दीं। देशान्तर से आकर व्यक्ति ने जब अपनी नौली खोली तो उसमें नकली मोहरें थीं। उसने सेठ से पूछा । सेठ ने कहा- 'मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता । ' निराश होकर व्यक्ति विवाद को लेकर न्यायालय में पहुंचा। न्यायाधीश ने पूछा- 'वह नौली किस समय रखी थी ?' उसने धरोहर रखने का सही समय बता दिया। उस नौली की मोहरें वर्तमान काल की थीं और उस व्यक्ति का धरोहर रखने का समय उससे पहले का था । सेठ का कपट राजा को निवेदन किया गया। सेठ को अपराधी घोषित कर उसे दंडित किया गया और धरोहर के स्वामी को असली मोहरें दिला दी गयीं।" १७४. भिक्षु एक संन्यासी के पास मोहरों की नौली धरोहर रूप में रखकर व्यक्ति परदेश चला गया। वहां से लौटकर वह संन्यासी से नौली लेने गया । संन्यासी ने आनाकानी की। तब उस व्यक्ति ने जुआरियों से मदद मांगी। उन्होंने पूछा तब व्यक्ति ने सही-सही बात बता दी। उन जुआरियों ने गेरुए वस्त्र पहने और स्वर्णपादुकाएं लेकर संन्यासी के पास पहुंचे। वे संन्यासी से बोले -- 'हम तीर्थयात्रा के लिए जा रहे हैं। ये स्वर्णपादुकाएं आप अपने पास रखें। तीर्थयात्रा से लौटकर हम आपसे वापिस ले लेंगे। आपकी सत्यनिष्ठा पर हमें पूरा विश्वास है ।' वे बात कर ही रहे थे कि ठीक उसी समय वह संकेतित नौली वाला पुरुष वहां आ पहुंचा और संन्यासी से अपनी धरोहर मांगी। भिक्षु ने सोचा यदि मैं इसकी धरोहर नहीं लौटाऊंगा तो मेरे प्रति इनको अविश्वास जाएगा। संन्यासी ने स्वर्णपादुकाओं के लालच में उसकी धरोहर उसे दे दी। वे भिक्षु वेषधारी पादुका लेकर यह कहते हुए चले गए कि हम इनको मंजूषा में रखकर आपके पास छोड़ जायेंगे। १७५. बालक-निधान ४९३ दो मित्र ग्रामान्तर जा रहे थे। उनमें एक कपटी था और दूसरा सरल। मार्ग में उन्होंने निधान देखा। कपट मित्र बोला- 'आज नक्षत्र ठीक नहीं है अतः कल सुनक्षत्र की वेला में इसे ले जायेंगे।' वह धूर्त मित्र उसी दिन उस निधान को निकालकर घर ले गया और उसके स्थान पर कोयले रख दिए। दूसरे दिन प्रात:काल दोनों मित्र वहां गए। निधान के स्थान पर कोयले देखकर वे हैरान हो गए। वह धूर्त मित्र सिर पीटकर बोला- 'हम कितने मंदभाग्य हैं ? निधान कोयला कैसे हो गया?' दूसरा मित्र उसके कपट को समझ गया पर उसने अपने हृदय की बात प्रकाशित नहीं की। उसने मित्र से बदला लेने का उपाय ढूंढ निकाला। उसने मित्र को मिट्टी की मूर्ति बनवाई और दो बंदर ले आया। वह उस मूर्ति के हाथ आदि पर १. आवनि. ५८८/१५, आवचू. १ पृ. ५५०, हाटी. १ पृ. २८१, मटी. प. ५२२ । २. आवनि. ५८८/१५, आवचू. १ पृ. ५५०, ५५१, हाटी. १ पृ. २८१, मटी. प. ५२२ । मलयगिरि टीका के अनुसार भिक्षु वेशधारी जुआरी यह बहाना करके चले गये कि और भिक्षु भी आने वाले हैं अतः सामूहिक रूप में आपके पास पादुकाएं रखेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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