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________________ परि. ३: कथाएं अन्यथा ऐसे कैसे होता है ? १७१. मुद्रिका एक गांव में एक पुरोहित रहता था। वह जनता का विश्वासपात्र था। लोगों में यह धारणा थी कि यह सत्यवादी और लोभरहित है। लोग उसके पास अपनी चीजें धरोहर के रूप में रख देते थे। एक बार एक द्रमक हजार सिक्कों से भरी नौली पुरोहित के पास रखकर देशान्तर गया। प्रयोजन पूरा होने पर उसने पुरोहित से नौली मांगी लेकिन पुरोहित ने नौली देने से इंकार कर दिया। द्रमक पागल जैसा हो गया। एक बार अमात्य उसी रास्ते से जा रहा था। द्रमक ने अपनी बात मंत्री को बताते हुए कहा-'कृपा करके आप पुरोहित से मेरी हजार द्रमकों से भरी नौली दिला दीजिए।' अमात्य को उस पर दया आ गयी। राजा ने पुरोहित को बुलाकर नौली वापिस देने को कहा लेकिन पुरोहित ने अस्वीकार करते हुए कहा- 'मेरे पास इसकी कोई नौली नहीं है।' राजा ने द्रमक को एकान्त में बुलाकर सत्य बात बताने को कहा। उसने राजा को दिन, मुहूर्त, स्थान तथा पार्श्ववर्ती साक्षी की सही-सही जानकारी दे दी। एक बार राजा पुरोहित के साथ द्यूतक्रीड़ा करने लगा। राजा ने आपस में मुद्रिकाओं का परिवर्तन कर लिया। राजा ने एकान्त में जाकर अपने विश्वासपात्र कर्मचारी को मुद्रिका देते हुए कहा- 'पुरोहित को ज्ञात न हो. इस प्रकार तम उसके घर जाकर उसकी पत्नी को कहो कि द्रमक ने अमुक दिन, अमुक समय में जो सहस्र द्रमकों वाली नौली दी थी, वह मुझे दो। पत्नी को विश्वास दिलाने के लिए यह पुरोहित की मुद्रिका दिखा देना।' पुरोहित की मुद्रिका देखकर पत्नी को विश्वास हो गया और उसने वह नौली दे दी। वह नौली को लेकर राजा के पास आया। राजा ने अनेक नौलियों के मध्य वह द्रमक वाली नौली रख दी। पुरोहित के सामने द्रमक को अपनी नौली पहचानने के लिए कहा। द्रमक ने अपनी नौली पहचान ली। राजा ने वह नौली उसे दे दी और पुरोहित की जीभ कटवा दी। १७२. अंक एक सेठ दूसरों की धरोहर लेकर प्रामाणिकता से उनको वापिस लौटा देता था। लोगों में उसके प्रति प्रशंसा एवं सम्मान के भाव थे। एक बार एक द्रमक ने हजार रुपयों से भरी थैली सेठ के यहां धरोहर के रूप में रखी। सेठ ने थैली के निचले हिस्से में छेद करके खरे रुपए निकाल लिए और उसमें खोटे सिक्के भर दिए। नीचे से थैली की फिर वैसी ही सिलाई कर दी। परदेश से लौटकर जब वह व्यक्ति धरोहर मांगने आया तो सेठ ने उसे वह थैली दे दी। उसने मुद्रा तोड़ी। अंदर खोटे सिक्के देखकर उसने सेठ से पूछा पर सेठ ने इन्कार कर दिया। वह व्यक्ति न्याय के लिए राजकुल में गया। न्यायाधीश ने पूछा- 'तुम्हारी नौली में कितने रुपए थे?' द्रमक बोला- 'हजार रुपए थे।' न्यायाधीश ने नौली में हजार रुपए गिनकर डालने शुरू किए। सिलाई के कारण नीचे का भाग कुछ संकड़ा हो गया था अतः रुपए नहीं समा सके। राजा को निवेदन करने पर सेठ को अनैतिकता के लिए दंडित किया गया। १. आवनि. ५८८/१५, आवचू. १ पृ. ५५०, हाटी. १ पृ. २८१, मटी. प. ५२१ । २. आवनि. ५८८/१५, आवचू. १ पृ. ५५०, हाटी. १ पृ. २८१, मटी. प. ५२१, ५२२ । ३. आवनि. ५८८/१५, आवचू. १ पृ. ५५०, हाटी. १ पृ. २८१, मटी. प. ५२२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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