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आवश्यक नियुक्ति लिया कि जिसको पूर्व की ओर भेजा है, वह द्विष्ट है क्योंकि उसको आते-जाते दोनों समय ललाट पर सूर्य का ताप झेलना पड़ा। पश्चिम की ओर जाने वाले को नहीं।
मंत्री के निर्णय पर राजा ने विश्वास नहीं किया क्योंकि दोनों दिशाओं में एक-एक को भेजना जरूरी था। मंत्री ने दूसरा प्रयोग भी किया। कुछ समय पश्चात् पूर्ववत् दोनों भाइयों को प्रस्थित कर दोनों के लौटने के समय दो व्यक्तियों ने एक ही समय में आकर पत्नी से कहा- 'मार्ग में आते हुए तुम्हारे पति अत्यंत बीमार हो गए हैं। यह सुनकर पत्नी ने बड़े भाई की बीमारी के प्रति उपेक्षा के भाव दिखाए। छोटे भाई की बीमारी के प्रति चिंता व्यक्त करती हुई वह बोली- 'वे प्रारंभ से ही शिथिल संहनन और कोमल शरीर वाले हैं, उनको संभालना आवश्यक है।' वह उसी दिशा में प्रस्थित हो गई। सभी को मंत्री की बात पर विश्वास हो गया। १६९. पुत्र
__एक श्रेष्ठी के दो पत्नियां थीं। एक के पुत्र था, दूसरी के नहीं। एक बार सेठ अपनी दोनों पत्नियों को साथ ले अन्य राज्य में गया। वहां उसकी मृत्यु हो गई। पुत्र छोटा और भोला था। उसके प्रति दोनों का समान स्नेह था अत: वह मूल मां को नहीं पहचानता था। दोनों पत्नियों में विवाद हो गया। एक कहतीयह मेरा पुत्र है और दूसरी कहती-यह मेरा है। दोनों में सामंजस्य नहीं हुआ। वे राज-दरबार में पहुंची। विचित्र विवाद था। अमात्य ने न्याय करते हुए कहा-'सेठ की संपत्ति के दो भाग कर दो। फिर करवत से बच्चे के दो भाग कर दोनों को एक-एक दे दो।' मूल मां बोली- 'यह इसी का पुत्र है, इसे दे दो पर बच्चे को मत मारो।' दूसरी स्त्री चुपचाप बैठी रही तब अमात्य ने जान लिया कि सच्ची मां कौन है ? उसी को पुत्र सौंप दिया और दूसरी का तिरस्कार करके निकाल दिया। १७०. शहद का छत्ता
एक जुलाही उद्भामिका थी। एक जार पुरुष के साथ मैथुन क्रीड़ा में रत उसने मधुमक्खी का छत्ता देखा। उसका पति मोम खरीदना चाहता था पर उसने उसे रोक दिया और कहा- 'मत खरीदो, मैं तुम्हें मधुमक्खी का छत्ता दिखा दूंगी।' वे दोनों गवाक्ष में गए पर पति को वह छत्ता दिखाई नहीं दिया। तब जुलाहे की उस पुत्री ने रतिमुद्रा में स्थित होकर वह दिखाया। पति ने जान लिया कि यह व्यभिचारिणी है
१. आवनि. ५८८/१४, आवचू. १ पृ. ५४९, हाटी. १ पृ. २८०, मटी. प. ५२१ । २. आवनि. ५८८/१४, आवचू. १ पृ. ५४९, हाटी. १ पृ. २८०, २८१, मटी. प. ५२१ । ३. (अ) नंदी में यह कथा परिवर्तित रूप से मिलती है। पति पत्नी में कलह होता रहता था। एक दिन दोनों मधुसिक्थ---
शहद के छत्ते के पास गए। पति बोला-'शहद में कितनी मिठास है।' पत्नी बोली-'तुम मिठास के हेतु को नहीं जानते। सब मक्खियां रानी के आदेश पर चलती हैं इसलिए शहद में मिठास है। तुम भी मेरी बात मानकर चलो, तुम्हारे जीवन में भी मिठास आ जाएगी।' पति ने उसकी बात स्वीकार कर ली। कलह समाप्त हो गया। यह पत्नी की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। (ब) नंदी पृ. २०७, अ. भा. साधुमार्गी जैन संस्कृति, रक्षक संघ सैलाना द्वारा प्रकाशित 'नंदीसूत्र' में भी कुछ अंतर के साथ यह कथा मिलती है।
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