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________________ ४९० हो गयी और क्षुल्लक जीत गया ।' १६७. (अ) मार्गस्त्री एक व्यक्ति पत्नी के साथ वाहन से ग्रामान्तर जा रहा था । पत्नी शरीरचिन्ता की निवृत्ति के लिए वाहन से नीचे उतरी । वहां एक व्यन्तरी उस पुरुष के रूप में आसक्त होकर वाहन में आकर बैठ गई। शौचक्रिया से निवृत्त होकर जब उसकी मूल पत्नी आई तो वाहन को न देखकर वह रोने लगी। वाहन का पीछा कर वह गांव में पहुंची और पति के पास अपने समान रूप वाली स्त्री को देखा। उसने ग्राम प्रधान न्याय मांगा। दोनों स्त्रियां उस पुरुष को स्वयं का पति तथा एक दूसरे को व्यन्तरी बताने लगीं। प्रधान ने दोनों स्त्रियों को दोनों ओर तथा बीच में पुरुष को खड़ा करके कहा - 'जो अपने हाथ से इसका स्पर्श कर लेगी, वही इसकी स्त्री मानी जाएगी।' मूल पत्नी का हाथ पुरुष तक नहीं पहुंचा। वह निराश होकर खड़ी रही । व्यन्तरी ने वैक्रिय शक्ति से हाथ लंबा कर पुरुष का स्पर्श कर डाला। प्रधान ने जान लिया कि यह व्यन्तरी है। पुरुष अपनी मूल पत्नी को साथ लेकर चला गया । २ (ब) मार्गस्त्री मूलदेव और कंडरीक मार्ग से कहीं जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने एक पुरुष को महिला के साथ जाते हुए देखा। कंडरीक महिला के रूप में आसक्त हो गया। मूलदेव कंडरीक से बोला- 'मैं तुम दोनों का मिलाप कराता हूं।' मूलदेव ने कंडरीक को एक वन-1 - निकुंज में बिठा दिया और स्वयं मार्ग पर बढ़ने लगा। जब वह पुरुष स्त्री के साथ आया तब मूलदेव ने उससे कहा - 'यहां मेरी पत्नी प्रसव के निकट है अतः कृपा करके तुम अपनी पत्नी को वहां भेज दो।' उसने पत्नी को उस वन निकुंज में भेज दिया। वह उसके साथ रहकर लौट आई और मूलदेव का वस्त्र पकड़ कर हंसती हुई बोली- 'तुम्हारी पत्नी ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया है । " १६८. पति परि. ३ : कथाएं एक गांव में दो भाई थे। दोनों के एक ही पत्नी थी। लोगों को इस बात का आश्चर्य था कि स्त्री का दोनों के प्रति समान राग है। राजा को भी यह सुनकर विस्मय हुआ । उसने अपने अमात्य से कहा । अमात्य बोला- 'ऐसा होना संभव नहीं है । अवश्य ही इसमें कोई विशेष बात है।' अमात्य ने उस स्त्री को आदेश दिया कि वह दोनों पतियों को दो गावों में भेजे। एक को पूर्व दिशा के गांव में तथा दूसरे को पश्चिम दिशा के गांव में और उन्हें यह भी कह दे कि उसी शाम को घर लौट आना है। यह आदेश प्राप्त कर उस स्त्री ने बड़े भाई को पूर्व दिशा की ओर तथा छोटे भाई को पश्चिम दिशा की ओर भेजा। इससे मंत्री ने जान १. आवनि. ५८८ / १४, आवचू. १ पृ. ५४८, हाटी. १ पृ. २८०, मटी. प. ५२१ । २. आवनि. ५८८ / १४, आवचू. १ पृ. ५४९, हाटी. १ पृ. २८०, मटी. प. ५२१ । ३. नंदी के ' हारिभद्रीय टिप्पनकम्' में मूलदेव महिला के प्रति आसक्त हुआ और कंडरीक ने उसे वननिकुंज में बिठाया । (नंदीहाटि पृ. १३५) ४. आवनि. ५८८/१४, आवचू. १ पृ. ५४९, हाटी. १ पृ. २८०, मटी. प. ५२१, चूर्णि में मार्ग और स्त्री को अलग-अलग मानकर कथा का संकेत किया गया है, हाटी और मटी में मार्गस्त्री को एक साथ स्वीकार किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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